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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

फॉर्मूला वन कार या सड़क पर जेट विमान...

 
एक आधुनिक फार्मूला वन कार इतनी उच्च और परिष्कृत मशीन होती है कि इसकी तुलना लड़ाकू जेट विमान से की जा सकती है। इस खेल को और भी अधिक रोमांचक बनाने के लिए आयोजकों और इसमें हिस्सा ले रही कंपनियों की कोशिश रहती है कि ज्यादा से ज्यादा तेज रफ्तार वाली कारों का निर्माण किया जाए। इस खेल में अनुसंधान और विकास पर हर साल करोड़ों डॉलर निवेश किए जाते हैं।

फॉर्मूला वन कारें ट्रैक पर 200 से 300 किमी प्रति घंटे की गति से रेस करती हैं। हैरानी की बात यह है कि विमान को उड़ान भरने के लिए लगभग 270 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार की जरूरत होती है। टनों वजनी विमान इस गति पर आसानी से उड़ान भर लेता है। 

तो क्या कारण है कि जेट विमान की गति से दौड़ती एफ वन कार टेकऑफ नहीं करतीं? इसके पीछे इंजीनियरिंग की सबसे कुशल तकनीक 'वायुगतिकी' या 'एयरोडायनामिक्स' के सिद्धांत काम करते हैं। उच्च गति पर रेस करती कारों को हवा में टेकऑफ से बचाने के लिए डॉउनफोर्स का इस्तेमाल किया जाता है। कार के सामने-पीछे और अगल-बलग में विंग्स लगाए जाते हैं जिनसे कार को जमीन पर ही बनाए रखने जितना डॉउनफोर्स उत्पन्न होता है।
आधुनिक फ़ॉर्मूला वन कार के हर हिस्से को डिजाइन करते समय एयरोडायनामिक्स का ध्यान रखा जाता है। यहां तक कि ड्रायवर का हेलमेट भी एयरोडायनामिक्स के अनुसार ही बनाया जाता है। इंजिन से निकलने वाली गर्मी को प्रवाहित करने के लिए कार का अधिकतर हिस्सा खुला होता है लेकिन खुले हिस्सों में वायुप्रवाह अवरोधक न बने इसके लिए हर कोण पर खास ध्यान दिया जाता है।
डॉउनफोर्स पैदा करने के लिए इन कारों पर विंग्स लगाए जाते हैं जिससे एफ वन कार ट्रेक पर रहती है। तेज रफ्तार और विंग्स इतना डॉउनफोर्स उत्पन्न करते हैं कि कार किसी सुरंग की छत पर भी उलटा भी चल सकती है। 

इंडियन ट्रैक पर फार्मूला वन कार रेस का रोमांच
पहली बार फार्मूला वन की कारें जब दिल्ली में इंडियन ग्रां.प्री. के दौरान ट्रैक पर रेस लगाने उतरेंगी, तब आयोजक यह मान रहे कि इनमें से कोई न कोई ड्राइवर 320 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार दर्ज कर सकता है। ग्रां.प्री. सिरीज के तहत यहां पर 30 अक्टूबर को यह रोमाचंकारी रेस होने वाली है और भारतीय दर्शक एक साथ पांच विश्व चैम्पियनों को एफ 1 के अंतर्गत रफ्तार के रंग में देखेंगे।
इसमें कोई शक नहीं कि इंडियन ग्रां.प्री. में रफ्तार का जुनून सिर चढ़कर बोलेगा। इस रेस में 12 टीमें हिस्सा लेंगी जिसमें से 2 टीमें भारतीय रहेंगी। यूं तो एफ वन के ड्राइवरों को रफ्तार से बात करने की पुरानी आदत है लेकिन दिल्ली में बनाए गए एफ 1 ट्रैक में उन्हें भरपूर रोमांच का अनुभव होगा। 2004 में 369.9 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार का समय दर्ज किया जा चुका है जबकि माइकल शूमाकर 233.5 किलोमीटर प्रतिघंटे का वक्त निकाल चुके हैं।
दिल्ली में 320 किलोमीटर की रफ्तार की संभावना इसलिए जताई जा रही है कि ग्रेटर नोएडा में तीन कॉर्नरों की चौड़ाई काफी बढ़ाई गई है ताकि ओवरटेक में बाधा नहीं आए। दुनिया के दूसरे ट्रैक्स की ‍बनिस्बत यहां के कॉर्नर काफी बड़े हैं। सीधी रेस में इसी ट्रैक पर जब 210 की स्पीड आसानी से दर्ज की जा सकती है तो कयास लगाए जा रहे है‍ कि यहां एफ वन के चैम्पियंस 320 की स्पीड पर अपनी एफ 1 को दौड़ा सकते हैं। 

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