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सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

ताजमहल की दास्तान नए अंदाज में

 
अब तक ताजमहल की दास्तान मुमताज महल के हुस्न और शाहजहां के इश्क के तौर पर ही पेश की जाती रही है, जहां मुमताज बाल-बच्चों के लालन-पालन में मग्न एक आम बीवी है, लेकिन एक प्रवासी भारतीय लेखक दिलीप हीरो के नाटक में हिंदुस्तान की यह हसीन मलिका दूर तक सोचने और अपने शौहर के ताजो-तख्त को महफूज रखने में तमाम जोड़तोड़ करती दिखती है।
मुमताज महल को इस नए रूप में उकेरने वाले नाटक ‘टेल ऑफ द ताज’’ का मंचन भारत में शुक्रवार को होगा। इसका निर्देशन अशोक पुरांग और एम. सईद आलम कर रहे हैं।
हीरो के अनुसार मुमताज महल को एक भिन्न दृष्टिकोण से देखने की इस कोशिश की प्रेरक शक्ति द्वंद्व है। हिरो कहते हैं कि कठपुतलियां नचाने वाली महिलाएं हैं और कठपुतलियां पुरुष। इस नाटक में आप देखेंगे कि कैसे कठपुतलियां नचाने वाली पर्दे के पीछे से पूरे घटनाक्रम को अपने काबू में रखती हैं।
दिलीप अपने नाटक की चर्चा करते हुए कहते हैं कि मेरे नाटक में लक्ष्य और साधन की धारणा पर चर्चा की गई है। एक मोड़ पर शाहजहां कहते हैं ‘हम लक्ष्य और साधन के बीच घालमेल नहीं करें।’ इस पर मुमताज का जवाब है, 'दिन और रात की तरह ही उन्हें जुदा नहीं किया जा सकता।’
वे कहते हैं कि मुमताज का यह तर्क एक आम महिला से भिन्न है। मुमताज के लिए साधन कोई नैतिक या पवित्र नहीं है, बल्कि एक ज्यादा परिणामवादी चीज है। अपने शौहर के साथ चर्चा के दौरान उनके विचारों में से एक है ‘एक सौ दुआओं से ज्यादा ताकत एक तोप में है'। यह दिखाता है कि उनके विचार कितने साहसिक हैं। आलम का पीरोज ट्रूप 90 मिनट के इस नाटक का मंचन करेगा।
उन्होंने कहा कि यह नाटक ढेर सारे सवालों का जवाब देता है जैसे मुमताज और शाहजहां में कौन शातिर है और उनमें से कौन दूर तक सोचने वाला तथा चीजों को बेहतर ढंग से देखने वाला है और कौन ज्यादा अच्छा रणनीतिकार और योजनाकार है? इस नाटक में मुमताज का केन्द्रीय किरदार नीति फूल निभा रही हैं, जबकि एकांत कौल शाहजहां के रूप में दिखेंगे।
इश्क, ताकत और साजिश की थीम पर आधारित इस नाटक का आगाज शहंशाह जहांगीर के काल से होता है जब शहजादा शाहजहां और शहजादा परवेज के बीच सत्ता के लिए टक्कर चल रही होती है।
नाटक के लेख हीरो कहते हैं कि जहांगीर की बीवी नूरजहां चालें चलती हैं और शाहजहां के खिलाफ परवेज को इस्तेमाल करती है। हालांकि हम सबने पढ़ा है कि शाहजहां ने अपनी बहादुरी से ताज पहना, मुमताज ने उन्हें तख्त हासिल करने में मदद की।

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