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मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

ऑनलाइन लक्ष्‍मी-पूजन करें

Diwali Puja in Hindi
एक बार सनतकुमार ने सभी महर्षि-मुनियों से कहा- महानुभाव! कार्तिक की अमावस्या को प्रातःकाल स्नान करके भक्तिपूर्वक पितर तथा देव पूजन करना चाहिए। उस दिन रोगी तथा बालक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। सायंकाल विधिपूर्वक लक्ष्मी का मंडप बनाकर उसे फूल, पत्ते, तोरण, ध्वजा और पताका आदि से सुसज्जित करना चाहिए। अन्य देवी-देवताओं सहित लक्ष्मी का षोड्शोपचार पूजन करना चाहिए। पूजनोपरांत परिक्रमा करनी चाहिए।
मुनिश्वरों ने पूछा- लक्ष्मी पूजन के साथ अन्य देवी-देवताओं के पूजन का क्या कारण है?
सनतकुमारजी बोले- लक्ष्मीजी समस्त देवी-देवताओं के साथ राजा बलि के यहां बंधक थीं। तब आज ही के दिन भगवान विष्णु ने उन सबको कैद से छुड़ाया था। बंधन मुक्त होते ही सब देवता लक्ष्मीजी के साथ जाकर क्षीरसागर में सो गए। इसलिए अब हमें अपने-अपने घरों में उनके शयन का ऐसा प्रबंध करना चाहिए कि वे क्षीरसागर की ओर न जाकर स्वच्छ स्थान और कोमल शय्या पाकर यहीं विश्राम करें। जो लोग लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारियां उत्साहपूर्वक करते हैं, उनको छोड़कर वे कहीं भी नहीं जातीं।

Diwali Puja in Hindi
रात्रि के समय लक्ष्मीजी का आवाहन और विधिपूर्वक पूजन करके उन्हें नाना प्रकार के मिष्ठान्न का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए। दीपक जलाने चाहिए। दीपकों को सर्वानिष्ट निवृत्ति हेतु अपने मस्तक पर घुमाकर चौराहे या श्मशान में रखना चाहिए।

राजा का कर्तव्य है कि नगर में ढिंढोरा पिटवाकर दूसरे दिन बालकों को अनेक प्रकार के खेल खेलने की आज्ञा दे। बालक क्या-क्या खेल सकते हैं, इसका भी पता करना चाहिए। यदि वे आग जलाकर खेलें और उसमें ज्वाला प्रकट न हो तो समझना चाहिए कि इस वर्ष भयंकर अकाल पड़ेगा।

यदि बालक दुःख प्रकट करें तो राजा को दुःख तथा सुख प्रकट करने पर सुख होगा। यदि वे आपस में लड़ें तो राज-युद्ध होने की आशंका होगी। बालकों के रोने से अनावृष्टि की संभावना करनी चाहिए। यदि वे घोड़ा बनकर खेलें तो मानना चाहिए कि किसी दूसरे राज्य पर विजय होगी। यदि बालक लिंग पकड़कर क्रीड़ा करे तो व्यभिचार फैलेगा। यदि वे अन्न-जल चुराएं तो इसका अर्थ होगा कि राज्य में अकाल पड़ेगा।
                                                 ऑनलाइन लक्ष्‍मी-पूजन करें
virtua lpooja


दीपावली का पर्व रोशनी और खुशहाली का प्रतीक है। यह अवसर होता है, अपने इष्‍ट से मनोवांछित फल पाने का। दीपावली पर भक्‍त मां लक्ष्‍मी की आराधना कर मनोवांछित फल पा सकते हैं। अब वेबदुनिया पर आप न केवल मां लक्ष्‍मी के दर्शन, बल्कि विधिपूर्वक पूजन भी कर पाएंगे। वेबदुनिया पर आप ऑनलाइन लक्ष्‍मीजी के दर्शन और पूजन कर सकते हैं।

लक्ष्‍मी-पूजन के लिए यहां पर क्लिक करें।

लक्ष्मी पूजन करने हेतु निम्न निर्देशों का पालन करें।

* पुष्प अर्पण करने हेतु 'पुष्प' पर क्लिक करें।
* फल तथा अन्य सामग्री चढ़ाने के लिए उस पर क्लिक कर के पास माउस की सहायता से लक्ष्मीजी के पास ले जाएं।
* घंटी बजाने के लिए 'घंटी' पर क्लिक करें।
* दीपक से आरती करने के लिए 'दीपक' पर क्लिक कर के पास माउस की सहायता से लक्ष्मीजी के पास ले जाएं।


आतिशबाजी : दीयों की जगमगाती रोशनी के बीच आतिशबाजियों का अपना अलग ही मजा होता है। आपने अब तक इन आतिशबाजियों का खूब लुत्‍फ उठाया होगा, लेकिन यह मजा आप ऑनलाइन भी उठा सकते हैं। इस दीपावली पर वेबदुनिया अपने यूजर्स को ऑनलाइन आतिशबाजियों का लुत्‍फ उठाने का मौका दे रहा है।

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दिवाली : एक मनोरम त्योहार
दीपोत्सव, दीपपर्व, दिवाली, दीपावली। नामों का क्या है, कितने ही रख लें। लेकिन भाव एक ही है। सब शुभ हो, मंगलमयी हो, कल्याणकारी हो। उमंग, उल्लास, उत्कर्ष और उजास का यह सुहाना पर्व एक साथ कितने मनोभाव रोशन कर देता है। हर मन में आशाओं के रंगबिरंगे फूल मुस्करा उठते हैं। भारतीय संस्कृति में कितना-कितना सौन्दर्य निहित है। कहां-कहां से समेटे और कितना समेटे?
Deepawali 2011



खूबसूरत त्योहारों की एक लंबी श्रृंखला है जो किसी रेशमी डोरी की तरह खुलती चली जाती है और मानव मन का भोलापन कि इसमें बंधता चला जाता है सम्मोहित सा। सब भूल जाता है राग, द्वेष, विषाद, संकट, कष्ट और संताप। घर में पधारे हों जब साक्षात आनंद के देवता तो भला कहां सुध अपने दुखों की पोटली को खोलकर बैठने की।
कितनी मनोरम है हमारी भावनाएं कि हम वेदों-पुराणों में वर्णित ज्ञान को संचित करते हुए उसे अपनी कल्पना का हल्का-सा सौम्य स्पर्श देकर अपने लिए खुद ही सौन्दर्य का संसार रच लेते हैं। खुद ही सोच लेते हैं कि पृथ्वी पर अभी गणेशजी पधारें, फिर सोचते हैं मां दुर्गा पधारीं हैं और फिर पौराणिक और लोक-साहित्य की अंगुली थामे प्रतीक्षा करने लगते हैं महालक्ष्मी की।

इनमें झूठ कुछ भी नहीं है, सब सच है अगर अंतरात्मा और दृढ़ कल्पनाशक्ति से किसी दिव्य-स्वरूपा का आह्वान करें तो ईश्वर चाहे प्रकट ना हों लेकिन एक अलौकिक अनुभूति से साक्षात्कार अवश्य करा देतें हैं। हम चाहे कितने ही नास्तिक हों लेकिन इतना तो मानते हैं ना कि कहीं कोई ऐसी 'सुप्रीम पॉवर' है जो इस इतने बड़े सुगठित संसार को इतनी सुव्यवस्था से संभाल रही है।

बस, उसी महाशक्ति को नमन करने, उसके प्रति आभार प्रकट करने का बहाना हैं ये सुंदर, सुहाने सजीले त्योहार। ये त्योहार जो हमें बांधते हैं उस अदृश्य दैवीय शक्ति के साथ, जो हमें जीवन का कलात्मक संदेश देते हैं।


Deepawali 2011



अब दीपावली को ही लीजिए। एक नन्हा सा दीप। नाजुक सी बाती। उसका शीतल सौम्य उजास। झिलमिलाती रोशनियों के बीच इस कोमल दीप का सौन्दर्य बरबस ही मन मोह लेता है। कितना सात्विक, कितना धीर। बेशुमार पटाखों के शोर में भी शांत भाव से मुस्कराता हुआ। टूट कर बिखर-बिखर जाती अनार की रोशन लड़‍ियों के बीच भी जरा नहीं सहमता, थोड़ा-सा झुकता है और फिर तैयार पूरी तत्परता से जहान को जगमगाने के लिए। यही है संदेश दीपों के स्वर्णिम पर्व का।

इस दीपोत्सव पर जब सबसे पहला दीप रोशन करें तो याद करें राष्ट्रलक्ष्मी को। कामना करें कि यह राष्ट्र और यहां विराजित लक्ष्मी, सदैव वैभव और सौभाग्य की अधिष्ठात्री बनी रहें।

दूसरा दीप जलाएं तो याद करें सीमा पर तैनात उन 'कुलदीपकों' को जिनकी वजह से आज हमारे घरों में स्वतंत्रता और सुरक्षा का उजाला है।

तीसरा दीप प्रज्जवलित करें इस देश की नारी अस्मिता के नाम। जो परिवर्तित युग की विकृतियों से जुझते हुए भी जीत की मशाल लिए निरंतर आगे बढ़ रही है। बिना रूके, बिना थके और बिना झुके।

यह 'दिव्यलक्ष्मी' अपने अनंत गुणों के साथ इस धरा पर ना होती तो सोचें कैसे रंगहीन होते हमारे पर्व? श्रृंगारहीन और श्रीहीन? दीपपर्व पर श्रृंगार, सौन्दर्य और सौभाग्य की घर में विराजित देवी के साथ हम सबके आंगन में दिल नहीं दीये जले।

सांसारिक झिलमिलाती रोशनियों के बीच सुकोमल दीप की तरह सदा मुस्कुराएं। और क्यों ना इस बार अपने दीपक आप बन जाएं। 'देह' के दीप में 'आत्मा' की बाती को 'आशा' की तीली से रोशन करें। ताकि महक उठें खुशियों की उजास अपने ही मन ंगन में। इन पंक्तियों के साथ - मंगलकामनाएं...

नेह के छोर से एक दीप हम भेजें
रिश्तों के उस छोर से आप भी सहेजें
झिलमिल पर्व पर खुशियां गुनगुनाएं
आशाओं का रंगीन अनार बिखर-बिखर जाए... !
स्नेहदीप के साथ मधुर शुभकामनाएं !!

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