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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

ट्विटर पर 30 करोड़ डॉलर का ट्वीट

सऊदी अरब के अरबपति राजकुमार ने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर में 30 करोड़ डॉलर का निवेश किया। राजकुमार ट्विटर को बढ़ता हुआ बाजार मान रहे हैं, एक ऐसा बाजार जिसे जरूरत पड़ने पर जबरदस्त ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है।

राजकुमार अलवालिद बिन तलाल और उनकी निवेश कंपनी ने कई महीनों की बातचीत के बाद ट्विटर में 30 करोड़ डॉलर का अहम निवेश किया है। अब अलवालिद ट्विटर कंपनी के रणनीतिक हिस्सेदार हो गए हैं, यानी ट्विटर के बड़े फैसले उनके बिना नहीं होंगे।

ट्विटर पर लोग 140 अक्षरों तक के छोटे संदेश भेज सकते हैं। बीते साल ट्यूनीशिया से अरब जगत में क्रांति की शुरुआत हुई। ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने ही अरब वसंत के नाम से मशहूर क्रांति को सुलगाया।

केएससी प्राइवेट इक्विटी एंड इंटरनेशनल इनवेस्टमेंट कंपनी के निदेशक अहमद हलवानी कहते हैं, 'हमें लगता है कि आने वाले सालों में सोशल मीडिया मीडिया उद्योग की तस्वीर बदल देगा। इस सकारात्मक बदलाव पर ट्विटर की पकड़ होगी और इससे पैसा बनेगा।'

यह भी साफ है कि ट्विटर के सहारे सऊदी राजकुमार मीडिया की दिशा निर्धारित करने में भूमिका निभा सकेंगे। जरूरत पड़ने पर वह खास तरह का दबाव भी बना सकेंगे। अरब वसंत ट्यूनीशिया से जरूर शुरू हुआ, लेकिन बाद में वह मिस्र, मोरक्को और लीबिया से होता हुआ सीरिया तक पहुंच गया। सीरिया से सऊदी अरब ज्यादा दूर नहीं है। सऊदी अरब में महिलाओं का एक धड़ा ज्यादा अधिकारों की मांग करने लगा है।
अलवालिद मीडिया एंड टेक्नोलॉजी में भारी निवेश करने के लिए जाने जाते रहे हैं। वह केएचसी के मुख्य शेयरधारक हैं। केएचसी के पास सिटीग्रुप के अहम शेयर हैं। केएचसी एप्पल और रुपर्ट मर्डोक की कंपनी न्यूज कॉर्प में भी शेयर धारक है। अलवालिद एक नया अरबी न्यूज चैनल भी शुरू करने जा रहे हैं। अलअरब नाम के इस चैनल को कतर के न्यूज चैनल अल जजीरा का प्रतिद्वंद्वी कहा जा रहा है। अरब क्षेत्र के प्रभावशाली अखबार अशरक अल अवसात में भी केएसची की भागीदारी है।

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

फेसबुक पर जासूसी : मीठी-मीठी बातों से बचना जरा...

 
फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट विदेशी जासूसों के लिए नए जाल के रूप में उभरी है, जिसके बाद सरकार ने अर्धसैनिक बलों और सशस्त्र बलों से अपने करियर संबंधी सूचनाएं साझा नहीं करने या फिर ऐसी साइटों से दूर रहने के लिए कहा है।

आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि साइबर जासूसी का मामला सामने आया है, जहां संवेदनशील इलाकों में तैनात अर्धसैनिक बलों के अधिकारी सीमा पार के जासूस या विदेशी एजेंटों के साथ चैट करते हुए पाए गए। इंटरनेट पर ये जासूस या एजेंट अपने को महिलाओं के रूप में पेश करते हैं।

सूत्रों के मुताबिक इसके मद्देनजर कई बैठकें हुईं ताकि दुश्मन का जासूस सोशल नेटवर्किंग साइटों के माध्यम से अधिकारियों को अपने जाल में फंसाने के लिए सरकारी कंप्यूटरों का उपयोग न कर सके। अधिकारियों को भी इन तरकीबों के बारे में बताया गया है।

हालांकि कोई भी इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने या आंकड़ा देने को इच्छुक नहीं कि कितने अर्धसैन्यकर्मी इस प्रकार के साइबर जासूसी मामलों में शामिल हैं, लेकिन इन घटनाक्रम को करीब से जानने वाले दूर संचार मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि संवेदनशील इलाकों में तैनात अधिकारियों पर नजर रखने के लिए एक प्रभावी तंत्र तैयार किया जा रहा है।

सूत्रों के मुताबिक कुछ मामलों में तो अधिकारी आपत्तिजनक गतिविधि के साथ वीडियो चैट कर रहे हैं, जिसे अन्य देशों में जासूसों ने रिकॉर्ड किया और बाद में रणनीतिक या वाणिज्यिक सूचनाएं जुटाने के लिए ब्लैकमेल किया। अधिकारियों को तुरंत इन इलाकों से हटा दिया गया और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई है।

सूत्रों के अनुसार कुछ अधिकारियों को एके 47 और वर्दी में पोज देते हुए पाया गया और कुछ मामलों में तो वे सर्विस रिवॉल्वर के साथ पोज देते हुए देखे गए। पूछताछ के दौरान उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि उनका उद्देश्य लोगों खासकर लड़कियों को प्रभावित करना था।

सूत्रों ने कहा कि ऐसी घटनाएं अर्धसैन्य बलों में अधिक हैं, जबकि सशस्त्र बलों से भी कुछ ऐसी घटनाएं सामने आईं। गृह मंत्रालय ने पहले ही अधिकारियों से अपने सरकारी कंप्यूटरों पर फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों से दूर रहने को कहा है। मंत्रालय ने इस संबंध में अगस्त में ही परिपत्र जारी किया था।

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

जूते फायदेमंद हैं या नहीं, बहस शुरू

लंदन में एक महिला नंगे पांव चलती है। वह अपने साथ कई अन्य लोगों को नंगे पैर चलने की ट्रेनिंग भी देती है। आम लोग इन्हें हैरानी भरी नजरों से देखते हैं। सवाल पूछने पर महिला बताती है कि नंगे पांव चलना सेहत के लिए क्यों फायदेमंद है।

चाहे सर्दी-गर्मी हो, पथरीला रास्ता हो या कोई अन्य मुश्किल एना टूम्ब्स नंगे पांव ही चलना पसंद करती हैं। पर्सनल ट्रेनिंग कंपनी बेयरफुट रनिंग यूके की 35 साल की सह संस्थापक एना अपने ग्राहकों को भी ऐसा ही करने की सलाह और ट्रेनिंग देती हैं। एना के मुताबिक अक्सर लोग उन्हें हैरत भरी नजरों से और खास किस्म का मुंह बनाकर देखते हैं।

इससे बेफिक्र एना और उनके साथी डेविड रॉबिन्सन लंदन के पार्कों में लोगों को नंगे पैर चलने का अभ्यास कराते हैं। इसके फायदे बताते हैं। एक तरफ स्पोर्ट्स का सामान बनाने वाली कंपनियां हैं जो हर साल जूतों के नए मॉडल बाजार में उतारती हैं। शरीर विज्ञान के विशेषज्ञों से सलाह लेकर कंपनियां कोशिश करती हैं कि ऐसे जूते बनाए जाएं जो इंसान को नंगे पैर भागने जैसा एहसास कराएं लेकिन सुरक्षा के साथ।

लेकिन एना टूम्ब्स की राय इससे अलग है। बेयरफुट का आधार क्रिस्टोफर मैकडाउगल की किताब 'बॉर्न टू रन' है। किताब में मैकडाउगल ने मेक्सिको के ताराहुमारा कबीले का जिक्र किया है। इस कबीले के लोग नंगे पैर काफी दूरी तक तेज रफ्तार से दौड़ सकते हैं। हैरानी की बात है कि आदिवासियों को ऐसी चोटें भी नहीं आती हैं जैसी तमाम साजोसामान से लैस विकसित देशों के एथलीटों को आती हैं।

विशेषज्ञ एड़ी वाले जूतों पर भी बहस कर रहे हैं। यह बात साफ नहीं हो सकी है कि क्या एड़ी वाले जूते इंसान के लिए अच्छे हैं या फिर जूतों की वजह से इंसान ज्यादा चोटिल होता है। बेयरफुट के समर्थक कहते हैं कि प्राकृतिक ढंग, दौड़ने का सबसे अच्छा तरीका है। पहले गद्देदार पंजा जमीन पर पड़ना चाहिए। इसके बाद तलवे के बीच के खाली हिस्से को मुड़ना चाहिए। फिर हल्की सी एड़ी जमीन को छूएगी, लेकिन तब तक पांव अगले कदम के लिए उठ जाना चाहिए। बेयरफुट से जुड़े लोग कहते हैं कि जूते इस प्राकृतिक लय को तोड़ते हैं। जूतों की वजह से एथलीट दौड़ते समय पहले एड़ी को जमीन पर पटकते हैं।

विज्ञान पत्रिका नेचर में 2010 में इस संबंध में एक रिपोर्ट छपी। हावर्ड यूनिवर्सिटी में क्रमिक विकास जीव विज्ञान के प्रोफेसर डेनियल लीबरमान ने पाषाण काल के इंसानों के दौड़ने की प्रवृत्ति का अध्ययन किया। वह यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि हमारे पूर्वज कैसे नंगे पैर उबड़-खाबड़ धरती पर दौड़ा करते थे।

लीबरमान और उनके सहयोगियों ने केन्या और ब्रिटेन के धावकों पर शोध किया। शोध में पता चला कि जो धावक नंगे पैर दौड़ते हैं वह हमेशा पहले पंजा जमीन पर रखते हैं, एड़ी बाद में जमीन छूती है। वहीं जो धावक जूतों के साथ दौड़ते हैं उनमें से अधिकतर एड़ी पहले जमीन पर रखते हैं। कड़े, नरम और कई अन्य तरह की सतहों पर जब धावकों के कदमों का असर आंका गया तो पता चला कि जो पंजा पहले रखते हैं, वे कम टकराव बल पैदा करते हैं। एड़ी पहले रखने वाले ज्यादा टकराव बल पैदा करते हैं। नंगे पैर दौड़ने वाले पैरों की मांसपेशियों का भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल करते हैं।

बेयरफुट के एक कार्यक्रम के लिए लंदन आए लीबरमान कहते हैं, अभी पर्याप्त आंकड़े नहीं है जिनके आधार पर कहा जाए कि आपके लिए क्या अच्छा है और क्या खराब।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

प्रदेश का सबसे बड़ा शहर अब हो जाएगा और 'बड़ा'


इंदौर. प्रदेश का सबसे बड़ा शहर और बड़ा होने जा रहा है। जो तैयारियां चल रही हैं उसके हिसाब से आने वाले समय में मौजूदा इंदौर का आकार दोगुना से भी ज्यादा होगा। यह बदलाव 35 साल बाद हो रहा है।

इस दफे 29 गांवों को जोड़ने की तैयारी चल रही है जिसके लिए सरकार भी जल्दी में है। यही कारण है कि सरकार से मिले आदेश के बाद निगम को सीमा वृद्धि से जुड़े तमाम दस्तावेज एक अफसर के हाथों सोमवार दोपहर में ही भोपाल पहुंचाने पड़े।

निगम की सीमा में वृद्धि की कोशिशें वैसे तो 2006 से चल रही हैं लेकिन सरकार की दिलचस्पी के अभाव के कारण मामला छह साल तक कमोबेश ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहा। फाइल किस गति से आगे बढ़ी इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है।

निगम ने 16 मई 2006 को गांवों को निगम सीमा में शामिल किए जाने का निर्णय लिया था लेकिन 18 महीने बाद 9 जनवरी 2008 को महापौर परिषद ने पहले चरण में 27 में से केवल 16 गांवों को ही निगम सीमा में शामिल किए जाने की मंजूरी दी। इस मंजूरी के सवा तीन साल बाद बाद 4 मई 2011 को संचालनालय नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने निगम को सीमा वृद्धि से जुड़ा प्रस्ताव और अधिसूचना का प्रारूप भिजवाने की चिट्ठी भेजी।

निगम ने प्रस्ताव के साथ अपनी ओर से लिखा कि शामिल किए जाने वाले प्रस्तावित क्षेत्र नगरीय सीमा से जुड़े हैं। पंचायतों द्वारा दी जा रही अनुज्ञाओं और वहां हो रहे अनियोजित विकास के कारण भविष्य की महानगरीय विकास स्तर की सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं।

इसके बाद 27 अगस्त को जिला योजना समिति की बैठक में सीमा वृद्धि का प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्णय लिया गया। इस बीच 23 ग्राम पंचायतों के 27 गांवों के प्रस्ताव के बजाय सभी 29 गांवों को निगम सीमा में शामिल किए जाए का विचार हुआ। महानगरीय विकास स्तर की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए निगम ने पिछली एमआईसी में छूटे दो गांवों को और निगम सीमा में शामिल करने को लेकर मंजूरी दे दी।

1975 में शामिल हुए थे 11 गांव

आज से 35 साल पहले 1975 में नगर निगम सीमा में वृद्धि के प्रस्ताव पर सरकार ने मुहर लगाई थी। उस वक्त 11 गांवों को इंदौर में शामिल किया गया था। सपनों के शहर को उम्मीदों के पंख लगाने के लिए सरकार स्तर से अब आसपास के 29 गांवों को जोड़ने के लिए दिलचस्पी दिखाई जा रही है।

19 गांव शामिल हैं अभी शहर में- वर्तमान में निगम की सीमा में 19 गांव आते हैं। इनमें नरवल, कबीर खेड़ी, निरंजनपुर, सुखल्या, भमोरी, भागीरथपुरा, खजरानी, पलासिया हाना, खजराना, पिपल्या हाना, मूसाखेड़ी, चितावद, पीपल्याराव, बिजलपुर, तेजपुर गड़बड़ी, सिरपुर, सुलकाखेड़ी, गाडराखेड़ी और बाणगंगा शामिल हैं।

शहर में जुड़ने वाले नए 29 गांव- निपानिया, पिपल्याकुमार, कनाड़िया, टिगरिया राव, बिचौली हप्सी, बिचौली मर्दाना, मुंडला नायता, पालदा, लिम्बोदी, बिलावली, फतनखेड़ी, कैलोद करताल, निहालपुरा मुंडी, हुकमाखेड़ी, सुखनिवास, अहीर खेड़ी, छोटा बांगड़दा, टिगरिया बादशाह, रेवती, बरदरी, भौंरासला, कुमेड़ी, भानगढ़, शकरखेड़ी, तलावली चांदा, अरंडिया, मायाखेड़ी, लसुड़िया मोरी और बड़ा बांगड़दा।