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बुधवार, 7 सितंबर 2011

किस्मत को बदलना है तो ऐसे सोचें....

कई लोग अपनी सारी असफलता और परेशानी को भगवान या किस्मत पर छोड़ देते हैं। जब भी किसी काम में अच्छे परिणाम नहीं मिलते तो लोग किस्मत को कोसने लगते हैं, या अपनी हार को भगवान के मत्थे मढ़ देते हैं।

कई लोग यह सोचकर दोबारा प्रयास भी नहीं करते कि शायद किस्मत में लिखा ही नहीं है। ऐसे में निराशा हम पर हावी हो जाती है। हम कोशिशें बंद कर देते हैं और फिर निष्क्रिय रहना हमारा स्वभाव बन जाता है।

एक राजा के दरबार में विरोचन और मुनि दो गायक थे। विरोचन की गायकी का पूरा दरबार कायल था, हर कोई उसे ही सुनता था। मुनि को यह बात अखरती थी। धीरे-धीरे उसने इसे अपनी किस्मत समझकर समझौता कर लिया। हर कोई विरोचन को मुनि से बेहतर मानता था क्योंकि दरबार में ज्यादातर विरोचन ही सुने जाते थे।

लगातार खुद की उपेक्षा होते देख, मुनि ने अपना नियमित अभ्यास भी छोड़ दिया। वह रोज शिव मंदिर के सामने बैठकर खुद की किस्मत और भगवान को कोसता रहता। एक दिन भगवान ने सोचा क्यों ना इसकी भी सुन ली जाए। मुनि मंदिर में बैठा भगवान को अपनी खराब किस्मत के लिए कोस रहा था तभी शिवजी प्रकट हो गए। उन्होंने कहा मुनि तू क्या चाहता है।

मुनि ने कहा मुझे भी विरोचन की तरह दरबार में किसी खास मौके पर गाने के लिए मौका चाहिए, लेकिन मेरी किस्मत में ऐसा मौका लिखा ही नहीं है। भगवान ने कहा ठीक है मैं तुझे एक मौका देता हूं। कुछ दिनों बाद राजा के दरबार में कुछ दूसरे राजा और विद्वान आए। उनके मनोरंजन के लिए विरोचन को बुलाया गया। लेकिन उस दिन विरोचन का गला खराब था। राजा ने मुनि को गाने का आदेश दिया।

चूंकि मुनि तो रियाज ही नहीं करता था, इस कारण वो ठीक से गा नहीं पाया। राजा को यह बात बुरी लगी। उसने मुनि को हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया। दुखी मुनि मंदिर पहुंचा तो वहां शिवजी पहले से बैठे थे। मुनि ने उनसे फिर शिकायत की। उसने कहा मौका दिया तो पहले बता तो देते मैं थोड़ा अभ्यास कर लेता। शिवजी हंस दिए।

उन्होंने समझाया कि मुनि जीवन में कोई भी अवसर बताकर नहीं आता, किस्मत कब खुल जाए, कब तुम्हें जीवन का सबसे बड़ा अवसर मिल जाए, यह तय नहीं है। हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। तुमने तो आस ही छोड़ दी, अभ्यास छोड़ दिया इसलिए तुम्हें आज अपमानित होना पड़ा।

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