हमारी आत्मा को प्रभु से बिछुड़े लाखों-करोड़ों साल हो गए हैं। वह कभी एक योनि में भटकती है, कभी दूसरी में, कभी तीसरी में। जब उस पर प्रभु की कृपा होती है, तभी उसे मानव शरीर मिलता है। यह शरीर, जिसमें प्रभु ने वे सब पदार्थ दिए हैं, जो हमें अपने आपको जानने के लिए और प्रभु को पाने के लिए चाहिए।
कई बार हम ऐसे कार्यों में लग जाते हैं जो कि गलत होते हैं लेकिन आदत के कारण या अन्य कारणों से उन कार्यों में लगे रहते हैं। फिर हम कोशिश करते हैं कि उनको छुपाएं, किसी को बताएं नहीं ताकि हममें जो कमियां हैं, उनकी जानकारी औरों तक नहीं पहुंचे। बहुत सी बार हमें यह भी मालूम होता है कि अच्छी संगत से हमारे अंदर की बुराइयां दूर होंगी, फिर भी हम उस संगत की ओर नहीं जाते। हम सोचते हैं कि जो कुछ कर रहे हैं, वह हमारे लिए ठीक है।
इतिहास में हम पाते हैं कि कई बड़े-बड़े गुनहगार, कोई डाकू, कोई चोर, कोई लुटेरा, जब किसी पूर्ण महापुरुष के पास पहुंचे तो उनकी जिंदगी में एकदम बदलाव आ गया, वे सभी बदल गए। हमें इतिहास में कई किस्से मिलते हैं, जिनसे हमें यह यकीन हो जाता है कि महापुरुषों की नजरे-करम जब हम पर पड़ती है तो हमारी जिंदगी एक सच्ची जिंदगी बन जाती है। हममें कोई भी खामियां हों, वे दूर हो जाती हैं। लेकिन बहुत सी बार हम उनके पास जाने में घबराते हैं।
हम सोचते हैं, शायद उन्हें सच पता होगा और हमें शर्मिंदा होना पड़ेगा। हम यह भूल जाते हैं कि उनकी दया मेहर हम सब पर है। वे जानते हैं कि हमारा असली रूप आत्मिक है और हम प्रभु के अंश हैं। वे जानते हैं कि कर्मों के लिहाज से, हालात के लिहाज से चाहे हम गलत कार्यों में लग गए हों, पर जब हम उनकी नजदीकी पाते हैं तो बुराइयां अपने आप हटनी शुरू हो जाती हैं।
हमें जिंदगी ऐसी जीनी है, जिसमें कि हम एक सच्चे इंसान की जिंदगी जीएं। एक सच्चा इंसान बनना ही मुश्किल है।
संत कृपालसिंह जी महाराज फरमाते थे कि जब हम एक सच्चा इंसान बन जाते हैं तो प्रभु को पाना कोई मुश्किल काम नहीं है। मुश्किल है, इंसान का सही मानो में एक सच्चा इंसान बनना। प्रभु को पाने के लिए वह पहला कदम है। अगर पहला कदम नहीं उठाया, तो इंसान अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता।
सच्चा इंसान वह है, जो प्रेम की जिंदगी जीता हो, तो अहिंसा का रास्ता अपनाता हो, जो नम्रता से जीता हो, जो निष्काम सेवा-भाव से जीता हो, जो पवित्र जिंदगी जीता हो, जो करुणा से जीता हो। ये गुण हम सभी ने अपनी जिंदगी में ढालने हैं।
हर एक जीव को एक न एक दिन इस धरती से चले जाना है। यह शरीर चंद क्षणों का है। लेकिन जो शरीर को जान देने वाली ताकत है, जिसे हम आत्मा कहते हैं, वह सदा-सदा के लिए जीने वाली है। उस आत्मा का हमें ध्यान करना है, ऐसी जिंदगी जीनी है, जिससे आत्मा को उभार मिले, आत्मा की बेहतरी हो, आत्मा को ताकत मिले।
वह तब होगा, जब हमारा ध्यान इस दुनिया से हटकर प्रभु की ओर होगा, जब हम सच्चाई के साथ जुड़ेंगे, 'शब्द' के साथ जुड़ेंगे। जब उस 'शब्द' के साथ हमारी आत्मा का मिलाप होता है, तो ऐसा होता है, जैसे पतझड़ में बहार आ जाती है। अगर एक पौधा हो, उसे पानी न दिया जाए, उसका पोषण न हो, उसमें खाद न डाली जाए, उसे खुराक न दी जाए, तो क्या होता है? वह मुरझा जाता है। लेकिन जैसे ही उसे पानी दिया जाता है तो उसमें फिर से हरियाली आनी शुरू हो जाती है। वही हालत हमारी आत्मा की है।
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