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शनिवार, 26 नवंबर 2011

'सवाल' जो दर्द को तो हवा देते हैं लेकिन जवाब नहीं, आखिर क्यों...

 
आज से ठीक तीन साल पहले (26 /11 /2008) मुंबई में समुद्र के रास्ते दस आतंकी आए और पूरे शहर में आतंक का घिनौना खेल खेला। इस हमले ने अगले 60 घंटों तक पूरे देश को एक तरह से बंधक सा बना लिया। दिल्ली से लेकर देश के गांव-गांव तक लोग यही सोच रहे थी कि आखिर इस खूनी खेल का अंत क्या होगा?

29 नवम्बर की सुबह जब एन एस जी कमांडो ताज होटल से बाहर निकले तब जाकर पूरे देश को इस बात का यकीन हो सका कि 164 निर्दोष लोगों को मौत कि नींद सुला चुके दस में से नौ आतंकी मारे जा चुके हैं और एक को गिरफ्तार कर लिया गया है।

हमले के बाद सारे देश की निगाह दोषी या जिम्मेदारी तय करने के सरकारी खेल पर थी। लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर इतनी बड़ी मात्रा में गोले-बारूद के साथ ये आतंकी देश में घुसे कैसे? आखिर क्यूं सिर्फ दस आतंकियों पर काबू पाने में 60 घंटे का वक्त लग गया? सुरक्षा की इतनी बड़ी नाकामी के बाद इसे दूर करने के लिए सरकार क्या कदम उठाने वाली है?

 

सकते में आई सरकार ने माना कि इस हमले को पाकिस्तान में बैठे कुछ आतंकी संगठनों ने अंजाम दिया है। इसके बाद दिल्ली में यह घोषणा की गई कि जब तक पकिस्तान इन आरोपियों को देश को नहीं सौंपता दोनों देशों के बीच कोई वार्ता नहीं होगी। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक ने इस हमले की घोर आलोचना की और पाकिस्तान को इस मामले में भारत का सहयोग करने की हिदायत दी। हालांकि यह हिदायत सिर्फ मुंहजुबानी थी।

 
हमारी सरकार ने जिम्मेदार संगठनो से लेकर आतंकियों तक का नाम पाकिस्तान को सौंपा। इनमे से कुछ को पाकिस्तानी सरकार ने हाउस अरेस्ट तक किया जिनमें सबसे बड़ा नाम था जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज़ मुहम्मद सईद का। 

कुछ ही दिनों बाद यह साबित हुआ कि पाकिस्तानी सरकार कि यह कार्यवाही सिर्फ एक दिखावा मात्र है, क्योंकि लाहौर कोर्ट के आदेश पर सरकार ने सईद को आजाद कर दिया है और भारतीय सरकार पर आरोप मढ़ दिया कि हम उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाए हैं।
 

हमारी सरकार ने माना कि समुद्र की सीमा पर्याप्त सुरक्षित नहीं है लेकिन आज भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। न तो हमने मार्च 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों से कोई सीख ली थी और न ही 26 /11 की घटना से। तभी तो 1993 के बाद भी 26 /11 जैसी घटना हुई और इसके बाद 13 जुलाई 2011 को मुंबई के व्यस्ततम इलाकों (झवेरी बाजार, दादर और ओपेरा हाउस में 8 मिनट में तीन बम धमाके में 31 लगों की मौत) में फिर से वही हुआ जिसका डर था।
 

ज्यादा लाग-लपेट के बिना मूल बात अब भी वही है कि क्या आज भी हमारे समुद्र से लेकर हवाई रास्ते या सीमाएं इतनी सुरक्षित है कि हम बिना भय दिल्ली के चावड़ी बाजार से लेकर मुंबई की झवेरी बाजार या वाराणसी के घाटों पर निश्चिन्त होकर घूम सकते हैं? 

 
आपकी राय: आप बताइए कि ऐसा क्या है जो सरकार ने अब तक नहीं किया? आखिर क्यों इतनी दर्दनाक घटनाएं भी सरकारों की संवेदनाओं को जगाने में सफल नहीं हैं? अगर आपके हाथ में सत्ता की बागडोर होती तो सबसे पहले आप क्या कदम उठाते ?. (टिप्पणी करते हुए कृपया मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करें)

1 टिप्पणी:

VICKY ने कहा…

सब लोग २६/११ में मरे गए लोगो के प्रति श्रधा सुमन अर्पित कर रहे है क्या हमारे ऐसा करने से लोगो के दिलो के जख्मो को भरा जा सकता है क्या उन माँ के अन्धु वापस लाये जा सकते है जिनकी आंखे आज भी न्याय की उम्मीद लगाये बैठी हुयी है नहीं ना तो ऐसा करके हम लोगो को क्या दिखाना चाहते है मित्रो सिर्फ किसी के साथ दो पल आशु बहाने से किसी के दर्द कम नहीं हो जाते है अगर आप कुछ करना चाहते है तो एक साथ मिलकर साथ निभाए और जो हमरी सरकार की नीतिया है उसे एक आइना दिखाए जब भी कोई आतंकी हमला होता है तो हमारे देश की सरकार कहती है की आतंकवाद एक बहुत ही बड़ी समस्या है जिससे लड़ने के लिए पूरा देश एक हो और हमारी सरकार खुद ही आतंकियों को सरण दिए हुयी है ये वही कसाब है जिसने २६/११ घटना को अंजाम दिया था और हमारी सरकार उसे फासी देने के बजाय उसे ऐसे सुरक्षा दी है जैसे उसने हमारे देश के लिए मेडल जीता हो अगर हमारे देश की सरकार सजा नहीं दे सकती है तो उसे जनता के हवाले क्यों नहीं दे देती जिसका वो मुजरिम है .................. आज सुबह मै जब अखबार पढ़ा रहा था तो मेरे आंखे नाम हो गयी उस घटना को याद करके फिर हमने अख़बार को आगे पढ़ा ही नहीं .......