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मंगलवार, 1 नवंबर 2011

'धरती की आबादी के लिए तीन ग्रहों की जरूरत'


दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में नेता और जानकार अपनी नीतियां बदलने पर मजबूर हो रहे हैं। क्या इस बढ़ती आबादी का कोई अंत है?

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अक्टूबर के अंत तक दुनिया की आबादी सात अरब पार कर जाएगी। जानकार इसे जनसंख्या विस्फोट का नाम देते हैं। मानवता के इतिहास में आबादी कभी इतनी तेजी से नहीं बढ़ी जितनी पिछले दो सौ सालों में बढ़ गई है। 2050 तक धरती पर नौ अरब से ज्यादा लोग होंगे।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार धरती पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति के कुछ अधिकार हैं जिनसे उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता। इसमें पीने का पानी, पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य, शिक्षा और रहने की जगह सबसे जरूरी हक हैं। इन सुविधाओं के साथ दुनिया भर में लोगों का जीवन स्तर वैसा ही होना चाहिए जैसा पश्चिमी देशों में। लेकिन क्या ऐसा वाकई में मुमकिन है?

जर्मन पर्यावरण विशेषज्ञ और वर्ल्ड फ्यूचर काउंसिल के सदस्य एर्न्स्ट उलरिष फॉन वाइत्सजेकर का कहना है कि लोगों की अमेरिकी या यूरोपीय जीवन स्तर तक पहुंचने की संभावना बहुत कम है। फॉन वाइत्सजेकर मानते हैं कि यदि इसी तरह से आबादी बढ़ती रही तो हमें रहने के लिए तीन ग्रहों की जरूरत पड़ेगी।


जनसंख्या में चीन को पीछे छोड़ेगा भारत : 40 साल पहले रोम की एक गैर सरकारी संस्था ने 'लिमिट्स टु ग्रोथ' नाम का एक शोध प्रकाशित किया। इस शोध के अनुसार दुनिया में एक हद तक ही आबादी बढ़ सकती है, क्योंकि उसके आगे धरती लोगों का पोषण नहीं कर पाएगी। वहीं संयुक्त राष्ट्र के जानकार यां जीग्लर का मानना है कि धरती पर 12 अरब लोग रह सकते हैं बशर्ते उनके पोषण के लिए पर्याप्त खाना उपलब्ध हो।

जीग्लर यह चेतावनी देते हैं कि अगर आबादी इतनी ज्यादा हो गई तो साधनों को नए सिरे से बांटना पड़ेगा। वह कहते हैं, 'कई इलाकों में साधनों की इतनी कमी हो जाएगी कि यह दुनिया पहले जैसी नहीं रह पाएगी।'

संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार वह वक्त दूर नहीं जब भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी। भारत और चीन जैसे उभरते हुए देशों में साधनों की खपत सबसे ज्यादा है, भले ही वह पानी हो, खाद्य सामग्री, खनिज पदार्थ या जगह। जर्मनी की ग्रीन पार्टी के राल्फ फुएक्स का कहना है कि खनिज पदार्थों और ऊर्जा का जितना इस्तेमाल हो रहा है उसकी तुलना में उनकी पैदावार बहुत कम है।


बांग्लादेश में लोगों के बेघर होने का खतरा : जानकारों को इस बात की भी चिंता है कि बढ़ती हुई आबादी के कारण धरती का तापमान चार डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो दुनिया में तबाही मच जाएगी। एक अनुमान के अनुसार कम से कम 33 करोड़ लोग बाढ़ का शिकार होंगे। अकेले बांग्लादेश में ही सात करोड़ लोगों के बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है। पर्यावरण में होने वाले बदलावों के कारण कई जगह जमीन बंजर हो जाएगी। यानी एक तरफ बढ़ती आबादी की बढ़ती जरूरतें और दूसरी तरफ उपजाऊ जमीन की कमी।

फॉन वाइत्सजेकर के अनुसार साधनों का बेहतर रूप से इस्तेमाल होना जरूरी है, 'मैं यह कहना चाहता हूं कि हमें जमीन के हर वर्ग मीटर, हर किलो वॉट प्रति घंटा और पानी के हर घन मीटर से अभी के मुकाबले कम से कम तीन या शायद पांच गुना अधिक काम लेना होगा। लेकिन तकनीक की दृष्टि से देखेंगे तो यह नामुमकिन नहीं है।' फॉन वाइत्सजेकर का कहना ही कि यह कल्पना नहीं है, बल्कि वह केवल नए मानदंड खड़े कर रहे हैं।


जलवायु परिवर्तन पर चर्चा : जर्मन संसद में भी इस पर चर्चा चल रही है। 'ग्रोथ, वेल्थ, क्वॉलिटी ऑफ लाइफ' नाम का एक कार्यकारी दल बनाया गया है जो इस बात पर शोध कर रहा है कि किस तरह से बढ़ती आबादी और साधानों के बढ़ते इस्तेमाल को एक दूसरे से अलग किया जा सकता है।

इस साल दिसंबर में दक्षिण अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक होने जा रही है। उस से पहले नवंबर में जर्मनी के बॉन शहर में नेक्सस कान्फ्रेंस का आयोजन भी किया जा रहा है, जहां दुनिया भर के जानकार जलवायु परिवर्तन और दुनिया की बढ़ती आबादी को पानी, खाद्य सामग्री और ऊर्जा दिलवाने पर चर्चा करेंगे।

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