देश की आशा हिंदी भाषा

फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

अन्ना हजारे 'नए गांधी'-ब्रिटिश मीडिया

 
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को ‘नए गांधी’ का प्रादरुभाव बताते हुए ब्रिटिश मीडिया ने उनके आंदोलन को असाधारण रूप से सफल करार दिया लेकिन भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए सुपरमैन जैसे प्राधिकरण के खिलाफ चेतावनी दी है।

हजारे यहां की मीडिया में छाए हुए हैं। टेलीग्राफ की हेडलाइन है, ‘एक नया गांधी’।

टेलीग्राफ में पैट्रिक फ्रेंच की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अन्ना हजारे का असाधारण रूप से सफल अभियान। इस गांधीवादी नेता ने अपनी भूख हड़ताल से सरकार को असमंजस में डाल दिया।’ फ्रेंच ने भारतीय न्यायपालिका, राजनीतिक और सामाजिक तंत्र पर भी निशाना साधा है।
हालांकि फ्रेंच का कहना है कि उनके लोकपाल से नौकरशाही से भरे देश में सरकार का एक और स्तर पैदा होगा और उसके पास ऐसी शक्तियां होंगी जो पहले किसी सुपरमैन के पास रही होंगी। 
 तिहाड़ जेल से अन्ना हजारे का संदेश
 पूरे देश में नई क्रांति का अलख जगाने वाले गांधीवादी नेता अन्ना हजारे ने तिहाड़ जेल से कहा कि देशवासियों मैं शुक्रवार के दिन आपसे मिलने आ रहा हूं। मैं दिल्लीClick here to see more news from this city के साथ साथ पूरे देश से बात करने के लिए बेताब हूं। मेरी सेहत बिलकुल ठीक है और देशभर से मेरे आंदोलन को जो ऐतिहासिक समर्थन मिला है, उसने मुझमें नई ऊर्जा का संचार हुआ है। मुझे लगता है कि मैं 5 किलोमीटर पैदल चल सकता हूं

अन्ना ने किरण बेदी के साथ की गई रिकॉर्डिग में कहा कि तीन दिन के अनशन का मेरे शरीर पर कोई असर नहीं हुआ है और देशभर में जो लोग सड़कों पर उतरें हैं, उन्हें देखकर लगता है कि मैं अपने मकसद में काययाब हो गया।

मैं पूरे देश को जगाना चाहता था ‍ताकि भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाई जा सके। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और युवतियों ने अपनी ताकत से जाहिर कर दिया है कि देश की जनता चुप नहीं रहेगी। मेरा मकसद युवाओं को जगाना था। भारतीय युवा ही मेरी ताकत और मेरी आशा का केन्द्र हैं। देश में युवक-युवतियों का जो जोश मैं देख रहा हूं, मुझे लग रहा है कि मेरा सपना साकार हो गया।

तिहाड़ जेल से अन्ना ने कहा कि अगर देश का युवा जाग गया है तो मैं मानता हूं कि मेरे देश और समाज का भविष्य उज्ज्वल है। जब देश के युवक युवतियों को मैं देशभक्ति के नारे लगाते देखता हूं तो बता नहीं सकता कि मैं भी कितने जोश में आ जाता हूं। इन युवाओं से ही मुझे ऊर्जा मिलती है। मैं अपने देशवासियों को बताना चाहता हूं कि अनशन से मुझे बिलकुल भी थकावट नहीं हुई है।
अन्ना के अनुसार महंगाई बढ़ने की एक वजह भ्रष्टाचार है। महंगाई की वजह से देश की जनता काफी त्रस्त हो गई थी और उन्हें जरूरत थी एक 'व्यास पीठ' की, जो मैंने उपलब्ध करवा दी। मैंने तिहाड़ जेल में ही टीवी के जरिए पूरे देश का गुस्सा देखा कि कैसे जनता सड़कों पर उतर पड़ी है।

यह गुस्सा इसलिए था क्योंकि देशवासियों की सहनशक्ति खत्म हो गई थी। हर जगह रिश्वत का बोलबाला है। अब सरकार को चाहिए कि वह लोकपाल बिल में देरी नहीं करे। इस जनलोकपाल बिल के जरिए गरीबो को न्याय मिलेगा।

74 वर्षीय गांधीवादी नेता ने अपने संदेश में कहा कि हर वर्ग और उम्र के देशवासियों के उत्साह ने मुझे नई ऊर्जा दी है। मुझे भगवान पर विश्वास है, मंदिर पर नहीं। मैं गरीब, दु:खी, पीड़ितों में ही भगवान को खोजता हूं। इसीलिए गरीबों की सेवा ही प्रभु की पूजा है। मैं अपने आनंद में डूबा रहता हूं। गरीबों की सेवा का ही परिणाम है कि 74 साल की उम्र में मुझे कोई बिमारी नहीं हुई। न कोई बीपी, न कोई डायबिटिज और अभी तक कोई इंजेक्शन नहीं लगा है।

अन्ना के मुताबिक जब तक लोकपाल ‍कानून नहीं बन जाता, मेरा अनशन जारी रहेगा। मैं देश के युवक-युवतियों से यही कहना चाहता हूं कि आजादी की यह दूसरी लड़ाई है। इसे बीच में नहीं छोड़ना है। पता नहीं दूसरी बार ऐसा मौका कब आएगा। आप सबको अमर शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव समेत लाखों लोगों की आजादी के लिए दी गई कुर्बानियों को नहीं भूलना है। उन्हें हमेंशा अपने दिल से जोड़कर रखना है।

अन्ना के अनुसार सरकार ने मुझे धोखा दिया है, इसीलिए मुझे अनशन का फैसला लेना पड़ा। मुझमें इतनी ताकत है कि मैं 15 दिन तक अनशन कर सकता हूं और आगे एक सप्ताह भी अनशन पर रह सकता हूं। युवा के जोश को देखकर मुझे लग रहा है कि मैं हार्ट अटैक से मरना नहीं चाहता। यदि देश के लिए और समाज की भलाई के लिए मेरी मौत भी हो जाती है तो इसे मैं अपना सौभाग्य मानूंगा।

उन्होंने कहा कि मैंने टीवी पर देखा कि किस तरह देश की जनता भारत माता की जय, वंदे मातरम, इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रही है। इससे मेरा उत्साह दोगुना हो गया है और इसने मेरी शक्ति भी बढ़ा दी है। 

 नीति निर्माण में जन भागीदारी क्यों नहीं?
अण्णा हजारे का आंदोलन लाखों देशवासियों की भावनाओं का प्रतीक है। ये आक्रोश पूरी व्यवस्था के खिलाफ है। बात केवल लोकपाल बिल की नहीं है। बात ऐसी नीतियों के निर्माण की है जो वाकई प्रभावी हों

सरकार का एक बड़ा तर्क ये है कि नीति निर्माण का काम संसद का है। इसके लिए संसद के अलावा किसी और का दखल नहीं होना चाहिए। निश्चित ही संसद और सरकार की संवैधानिक गरिमा बनाए रखना जरूरी है और इसके साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। लेकिन आज के समय में सरकार को दकियानूसी खयालों से और बंद कमरों में बैठकर नहीं चलाया जा सकता।

जब सरकार बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स से लेकर गली-मोहल्ले के सड़क निर्माण तक में जनभागीदारी को बढ़ावा दे रही है तो फिर नीति निर्धारण में परहेज क्यों? सड़क, बिजली और पानी मुहैया करवाना सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी है। जब इनमें छोटे से लेकर बड़े प्रोजेक्ट में जनभागीदारी (पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप) के जरिए ये सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जा रही हैं तो फिर इस मॉडल के आधार पर पॉलिसी क्यों नहीं बनाई जा सकती?

क्या सरकार में बैठे सारे लोग हर विषय के अच्छे जानकार हैं? फिर क्यों नहीं जनता को साथ में लेकर ऐसी नीतियों का निर्माण किया जाता जो अधिक कारगर और प्रभावी हों?
एक और बड़ी उपलब्धि, जो अण्णा के आंदोलन की है, वो ये कि उसने सारे देश को तिरंगे रंग में रंग दिया है। सड़क पर अण्णा के समर्थन में निकले लोगों के हाथ में भगवा, हरे या हाथ का पंजा या कमल वाले चिह्न नहीं हैं, कुछ है तो बस तिरंगा। राजनेता तो पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने की बस बात ही करते हैं, लेकिन वो सचमुच ऐसा कभी नहीं करते। इस आंदोलन के बहाने से ही सही, अगर ऐसा हो रहा है तो बस इसे सही दिशा में लक्ष्य हासिल करने तक चलाए रखना जरूरी है। ये लहराते तिरंगे ही हमें एकजुट कर सकते हैं।
 

कोई टिप्पणी नहीं: