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शनिवार, 6 अगस्त 2011

ऐसा सोचेंगे तो हर काम मुश्किल हो जाएगा...


जीवन में कई काम दूसरों के सहयोग से ही पूरे होते हैं। मनुष्य यह सोच ले कि सबकुछ मैं ही कर लूंगा तो मुश्किल है। लेकिन जैसे ही जीवन में दूसरे का प्रवेश होता है, हलचल भी शुरू हो जाती है। आदमी की अपनी सत्ता बड़ी निरंकुश होती है।

दूसरा कितना सहयोग देगा या असहयोग करेगा इससे कभी-कभी भूचाल आ जाता है। लेकिन बिना उसके काम भी नहीं चलता। फकीरों ने एक शब्द कहा है खुमारी। इसका अर्थ होता है एक ऐसी स्थिति जहां आप होश में भी हैं और बेहोश भी, जहां दु:ख भी है और सुख भी, आंसू भी हैं और मुस्कान भी। कोशिश करें कि भावनात्मक रूप से दूसरों पर आश्रित न रहें।

व्यावहारिक रूप से सहयोग लें और सहयोग दें। ऐसा बिल्कुल न सोचें कि दूसरे हमारे ही हिसाब से चलेंगे। कई लोगों को यह बीमारी लग जाती है कि जो हम सोच रहे हैं या कह रहे हैं वैसा ही दूसरा करे। और इसी कारण हम दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं। या अपनी ऊर्जा इसमें लगाते हैं कि दूसरा हम पर हावी न हो जाएं। इस दुनिया में आए हैं तो दूसरों के बिना रहना मुश्किल है। इसलिए थोड़ा समय ध्यान यानी मेडिटेशन करें।

ध्यान से खुमारी जागती है। जब आप खुमारी का मतलब समझ जाएंगे तब आप स्थित-प्रज्ञ जैसे हो जाते हैं। लोगों से जुड़े भी रहेंगे और छिटके हुए भी रहेंगे। यदि आप भक्ति भी करेंगे तो आपके भीतर मीरा का नृत्य भी हो रहा होगा और बाहर महावीर की तरह, गौतमबुद्ध की तरह बिल्कुल शांत नजर आएंगे।

आप कृष्ण की तरह छोटी उंगली पर पर्वत भी उठा लेंगे और आप राम की तरह एक-एक पत्थर को समुद्र में पत्थर फिंकवाकर सेतु बनाते नजर आएंगे। इसलिए ध्यान की खुमारी २४ घण्टे में थोड़ी देर के लिए अपने भीतर जरूर उतारें।

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