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सोमवार, 8 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ इंटरनेट पर हल्ला बोल


क्या आप सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के खिलाफ भीतर ही भीतर गुस्से से भरे हैं? तो इंटरनेट पर चल रही किस्म-किस्म की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिमों से जुड़कर आप न सिर्फ अपना गुस्सा प्रकट कर सकते हैं, बल्कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की लड़ाई का सार्थक हिस्सा भी बन सकते हैं।
बाबा बाबा ब्लैकशिप। हैव यू एनी थॉट? यस सर, यस सर, थ्री स्ट्रैट शॉट।
वन फॉर द सिब्बल। वन फॉर द पुलिस कमिश्नर। एंड वन फॉर द डियर डिग्गी
हू इज फ्रॉड पॉलिटिकल प्रैक्टिसनर 
बा रामदेव के खिलाफ रामलीला मैदान में हुई पुलिस कार्रवाई के बाद सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक पर उभरी तीखी प्रतिक्रियाओं में एक प्रतिक्रिया यह भी थी। नर्सरी में पढ़ाई जाने वाली बाल कविता बा-बा ब्लैकशिप की तर्ज पर रची गई इस तुकबंदी को कई उपयोक्ताओं ने अपने खाते पर प्रकाशित किया। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ साइबर दुनिया में बोले जा रहे हल्ला बोल की व्यंग्यात्मक परिणति का नमूना था। जिस दिन बाबा रामदेव को रामलीला मैदान से जबरन हटाया गया, उसके फौरन बाद इंटरनेट की दुनिया कुछ घंटों के लिए रामदेवमय हो गई। गूगल ट्रेंड्स पर पुलिस कार्रवाई वाली शनिवार की रात दो बजे से रविवार शाम चार बजे तक ‘रामदेव अरेस्टेड’ दूसरा सबसे अधिक खोजे जाने वाला की-वर्ड था। गूगल ट्रेंडस इंटरनेट पर सबसे अधिक खोजे जाने वाले विषयों को बताने वाली वेब सेवा है।
सवाल बाबा या अन्ना का नहीं। सवाल है भ्रष्टाचार से त्रस्त आम लोगों के लिए अपनी भावनाएं व्यक्त करने के मंच का। और यह मंच लोगों को मिला है इंटरनेट पर। फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग और यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया के औज़ारों के रूप में। 5 अप्रैल को जंतर-मंतर पर आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हज़ारे के आंदोलन को सफल बनाने में सोशल मीडिया की प्रमुख भूमिका थी। बाबा रामदेव के आंदोलन की भी शुरुआती सफलता में सोशल मीडिया की खासी भूमिका रही। फेसबुक पर रुचि महाजन ने लिखा - ‘अन्ना हजारे के बाद रामदेव के आंदोलन को भी सफल बनाने में हमें ताकत झोंकनी होगी। अब भ्रष्टाचार की समस्या को जड़ से उखाड़ना है।’ गौरव शर्मा ने लिखा - ‘हम आपके साथ हैं। अब आप भ्रष्टाचार को समूल नाश करके उठना।’
भ्रष्टाचारसे पस्त और त्रस्त लोग अब इस महामारी के खिलाफ हर बेहतर मुहिम से जुड़ना चाहते हैं। इंटरनेट और मोबाइल की उपस्थिति ने इस अकुलाहट को आवाज़ देना शुरू किया है। इसका अग्रणी उदाहरण है अन्ना की अगुआई में इंडिया अगेंस्ट करप्शन को नेट पर मिली सफलता। अन्ना के आंदोलन से जुड़ी जानकारियां साझा करने के लिए निर्मित वेबसाइट इंडियाअगेंस्टकरप्शनडॉटओआरजी पर अनशन आरंभ होते ही समर्थकों की संख्या शुरुआती दिनों में ही 10 लाख पार कर गई। बेंगलुरू की एक निजी फर्म की शोध के मुताबिक अन्ना के अनशन के पहले तीन दिन में 8,26,000 लोगों ने इस विषय पर 44 लाख से अधिक ट्वीट किए थे।
दूसरी ओर बाबा रामदेव के आंदोलन को लेकर ट्विटर और फेसबुक पर मिली-जुली प्रतिक्रिया रही। रामदेव के नाम से बने फेसबुक पेजों पर अचानक समर्थन बढ़ गया। ‘बाबा रामदेव’ और ‘बाबा रामदेव सपोर्ट’ पेज पर एक लाख से अधिक लोगों ने समर्थन दिया। दो-चार हजार लोगों के समर्थन वाले तो सैकड़ों पेज हैं। लेकिन माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर प्रतिक्रिया ज्यादातर नकारात्मक रही। ट्विटर सेंटीमेंट एनालिसिस टूल ने रामदेव से जुड़े ट्वीट में 70 फीसदी नकारात्मक ट्वीट दर्ज किए। ट्विटर पर जाने-माने सेलेब्रिटी लोगों की तरफ से भी बाबा को ज्यादा समर्थन नहीं मिला, जबकि अन्ना के मामले में ऐसा नहीं था। अभिनेता मनोज वाजपेयी कहते हैं - ‘अन्ना हजारे ने देश के शहरी वर्ग और युवाओं को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ झटके में खड़ा कर दिया। सोशल मीडिया पर यही लोग अधिक सक्रिय हैं। संभव है कि लोगों की नजर में विश्वसनीयता के मामले में भी अन्ना बाबा रामदेव से आगे हों।’बेशक अन्ना हजारे और रामदेव की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के चलते सोशल मीडिया पर भी भ्रष्टाचार विरोधी तेवर ज्यादा दिखाई दिए। लेकिन ऐसा नहीं है कि इंटरनेट पर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का बिगुल इनकी वजह से ही फूंका गया। नेट पर कई लोग और संस्थाएं अपनी सामथ्र्य और रणनीति के अनुरूप भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई लड़ रहे हैं।
सामाजिक हित के मुद्दों की ऑनलाइन वकालत करने वाली गैर-लाभकारी अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘आवाज’ ने भारत में भी भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम को हाथो-हाथ लिया है। यह संस्था चार महाद्वीपों और 193 देशों में काम कर रही है जिसने जनहित के मुद्दों पर अपने सफल अभियानों से दुनिया भर के मुख्यधारा के मीडिया का ध्यान खींचा है। इससे जुड़े लोगों की संख्या 90 लाख को पार कर चुकी है। भारत में भी आवाज तीन साल से सक्रिय है।
अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान जनलोकपाल विधेयक के लिए आवाज की साइट आवाजडॉटओआरजी पर महज 36 घंटों के भीतर 6,50,000 लोगों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर किए थे। जनलोकपाल विधेयक को लेकर इन दिनों आवाज़ की तरफ से ‘सेंड ए मैसेज’ कैंपेन चल रहा है, जिसके तहत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और जनलोकपाल विधेयक के लिए गठित समिति में शामिल पांचों मंत्रियों को ई-मेल किए जा रहे हैं। इस कड़ी में 55 हजार से अधिक ई-मेल किए जा चुके हैं। केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पसरेनेल एंड ट्रेनिंग ने माना है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधीन लाने की मांग को लेकर उसके पास 11,000 से अधिक ई-मेल आ चुके हैं।
इंटरनेटपर एक दिलचस्प मुहिम आईपेडएब्राइबडॉटकॉम की भी है। इस साइट का नारा है - भ्रष्टाचार की बाजार कीमत का खुलासा करना। रिश्वत देने, न देने या देने लायक पैसा न होने जैसी श्रेणियों में लोग अपनी व्यथा इस साइट पर कह सकते हैं। करीब 11,000 लोग इस पर अपनी व्यथा रख चुके हैं। साइट के मुताबिक रिश्वत के मामले में मुंबई अभी सबसे आगे है। इसके बाद बेंगलुरू, नोएडा, चेन्नई और नई दिल्ली का नंबर आता है। इस साइट की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों की देश में लंबी कतार है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की साइट एडीआरइंडियाडॉटओआरजी की साइट पर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है। कर्नाटक में साकूडॉटइन के रूप में एक अलग मुहिम भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही है।
इस साइट का नारा है - वी कैन एंड करप्शन, यस वी कैन (हम भ्रष्टाचार को खत्म कर सकते हैं, हां, हम कर सकते हैं)। इस साइट पर भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से लेकर समस्या से पार पाने की अलग-अलग कई कहानियां रोजाना दर्ज हो रही हैं। राष्ट्रमंडल खेल के दौरान शिवेंद्र सिंह चौहान का भ्रष्टाचार केंद्रित कॉमनवेल्थ झेल कैंपेन भी खासा लोकप्रिय हुआ था। टाटा टी का जागो रे अभियान अलग किस्म का है, जो टेलीविजन से सोशल मीडिया तक दिखता है।
भविष्य में नेट के जरिये ही अहम बदलाव होंगे
आवाज का पूरा ध्यान आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ ऑनलाइन मुहिम को सशक्त बनाने में है। हम चाहते हैं कि सशक्तरूप में जनलोकपाल विधेयक कानून बने। संसद के अगले ही सत्र में बिल लाया जाए और कानून बनाया जाए। हमें भ्रष्टाचार-विरोधी ऑनलाइन मुहिम का बहुत अच्छा रिस्पॉंस मिल रहा है। जनलोकपाल बिल को लेकर हमनें ऑनलाइन याचिका साइन करने का कैंपेन छेड़ा, जिसे शानदार कामयाबी मिली। इस कैंपेन की शुरुआत में आवाज की कम्यूनिटी के 70,000 सदस्य थे, जो अब सात लाख हो चुके हैं। ‘सेंड ए मैसेज’ कैंपेन को भी खूब समर्थन मिल रहा है।
अगस्त के बाद हम भूमि अधिग्रहण कानून सहित कई दूसरे मुद्दों पर भी कैंपेन चलाएंगे। फिलहाल उन पर रिसर्च चल रही है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अगस्त के बाद भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम थम जाएगी। जनलोकपाल बिल को लेकर हमारा कैंपेन तब तक चलता रहेगा जब तक यह कानून बन नहीं जाता। हमारी योजना निजी जीवन में ईमानदारी लाने के बाबत एक कैंपेन शुरू करने की भी है। मैं रिश्वत नहीं दूंगा और लूंगा, ये कैंपेन का सार होगा। यह बात सही है कि भारत में अभी बहुत सारे लोग इंटरनेट के उपयोक्ता नहीं हैं। लेकिन धीरे-धीरे ही सही इंटरनेट की पहुंच बढ़ रही है। हमारे साथ सिर्फ महानगरों के लोग ही नहीं जुड़ रहे हैं, छोटे शहरों और कस्बों के लोग भी हमारे कैंपेन से जुड़ रहे हैं। हमारे पास इसका पूरा लेखा-जोखा है। हालात तेजी से बदल रहे हैं और भविष्य में नेट के जरिए ही महत्वपूर्ण बदलाव संभव होंगे।
हल्लाबोल की सीमा यह है कि अभी देश में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की गिनती 10 करोड़ से ज्यादा नहीं है। इनमें से भी ज्यादातर ई-मेल जैसे छोटे-मोटे कामों के लिए ही नेट का प्रयोग करते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार विरोधी संदेश न तो देश की व्यापक जनता तक पहुंच सकता है और न ही व्यापक जनता का आक्रोश यहां दर्ज होता है। फिर भी सोशल मीडिया में बात जंगल में आग की तरह फैलती है और देखते-देखते झटके में सरहदों से पार निकल जाती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम इसी वजह से साइबर दुनिया में सफल हो रही है। बेशक ऑनलाइन सफलता और जमीनी सफलता में अंतर है, लेकिन दो राय नहीं कि जमीनी स्तर पर आने से पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का आक्रोश वचरुअल दुनिया में व्यक्त हो रहा है। ग्वालियर के युवा राघवेंद्र शर्मा कहते हैं : मैं इंटरनेट पर ज्यादा सक्रिय नहीं हूं, लेकिन हाल के आंदोलनों को वचरुअल दुनिया में मिली सफलता को देख-समझ रहा हूं। ग्वालियर जैसे शहरों में भी अब नेट इस्तेमाल करने वाले काफी लोग हैं और यहां नेट के जरिए स्थानीय आंदोलन खड़ा किया जा सकता है।।
भ्रष्टाचार के खिलाफ नेट पर जारी मुहिम अपनी कार्यप्रणाली में बेहद लोकतांत्रिक है। यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। मुख्यधारा का मीडिया भी अब सोशल मीडिया पर घट रही गतिविधियों को लेकर खासा सचेत है। यही कारण है कि साइबर दुनिया में भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला बोल का प्रभाव पहला मौका मिलते ही वास्तविक दुनिया में भी सामने आता है। आपातकाल और उसके बाद हुए चुनाव के दौरान आज की तुलना में मीडिया के अत्यंत सीमित प्रभाव के बावजूद सूचनाएं तेजी से सारे देश में फैल जाती थीं। आज इंटरनेट इस प्रक्रिया और इसके प्रभाव को कई गुना ज्यादा बढ़ा रहा है। सरकारों के लिए यही कम खतरे की बात नहीं है।

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