देश की आशा हिंदी भाषा

फ़ॉलोअर

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

धर्मग्रंथों ने माना है नाग को देवता

शास्त्रों में पुजनीय है नाग देवता

धर्मग्रन्थों में नाग को देवता माना गया है और इनका विभिन्न जगहों पर उल्लेख भी किया गया है। हिन्दू धर्म में कालिया, शेषनाग, कद्रू (सांपों की माता) पिलीवा आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।

कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा कश्यप ऋषि (जिनके नाम से कश्यप गोत्र चला) की पत्नी 'कद्रू' नाग माता के रूप में आदरणीय रही हैं। कद्रू को सुरसा के नाम से भी जाना जाता है।
गोस्वामी तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस के अनुसार जब हनुमानजी समुद्र पार कर रहे थे, तब देवताओं ने उनकी शक्ति की परख करने की इच्छा से नागमाता 'सुरसा' को भेजा था। बल-बुद्धि का परिचय देकर हनुमानजी उनके मुख में प्रवेश कर कान की ओर से बाहर आ गए थे।
पहले हनुमानजी और सुरसा ने अपना-अपना शरीर विराट कर लिया था। तब हनुमानजी ने लघु रूप धारण कर सुरसा को संतुष्ट किया था। महाभारत में एक ऋषि आस्तीक का नाम भी सर्प कथा से जुड़ा है।
आस्तीक ने जनमेजय के सर्पयज्ञ में पातालवासी तक्षक सर्प को भस्म होने से बचाया था। ये ऋषि वासुकी नाग की बहन जरत्कारू की संतान थे। इसलिए ऐसा माना जाता है कि 'आस्ती, आस्ती पुकारने से सर्प क्रोध शांत हो जाता है।'
See full size image
वैज्ञानिक भी इस तर्क को स्वीकार करते हैं कि कंपन की गूंज से सांप प्रभावित होता है इसलिए संगीत की लय पर सर्प थिरकता है। बृहदारण्यक उपनिषद् में भी नागों का उल्लेख मिलता है।

नागपूजा या सर्पपूजा किसी न किसी रूप में विश्व में सब जगह की जाती है। दक्षिण अफ्रीका में कई जातियों में नाग को कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। ऐसा समझा जाता है कि कुल की रक्षा का भार सर्पदेव पर है।

कई जातियों ने नाग को अपना धर्मचिह्न स्वीकार किया है। सर्प का वध करना घोर पाप समझा जाता है। ऐसा भी मान्यता है कि पूर्वज सर्प के रूप में अवतरित होते हैं।
शिव की आराधना भी नागपंचमी के पूजन से जुड़ी है। पशुओं के पालनहार होने की वजह से शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में भी की जाती है। शिव की आराधना करने वालों को पशुओं के साथ सहृदयता का बर्ताव करना जरूरी है।

उत्तरप्रदेश के अनेक भागों में नागपंचमी का पर्व शिव के 'रिखेश्वर स्वरूप' की पूजा के रूप में मनाया जाता है। शिव ने नाग को धारण किया है और समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला था तब उस कालकूट का उन्होंने पान किया था, जो उनके गले में ही अटक गया था। इसलिए उन्हें नीलकंठ नाम से भी पूजते हैं।
आचार्य रजनीश के अनुसार विषपान करने वाला ही मृत्युंजय हो सकता है। इसलिए शिव में सच्चिदानंद का स्वरूप प्रकट है। इसलिए नागपूजा और नागपंचमी विशेष रूप से शिव से और विष्णु से भी जुड़ी है।

सर्पों की माताओं में सुरसा के साथ मनसा माता का भी नाम आता है। भारत के अनेक हिस्सों में मनसा माता के मंदिर बने हुए। जहाँ इनकी आराधना होती है और नागपंचमी को मेले भी लगते हैं। इन्हें शक्ति के रूप में भी पूजा जाता है। ये 'मनसा मंगल' के नाम से भी विख्यात हैं। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा से सर्पों का क्रोध शांत हो जाता है और कोई जनहानि नहीं होती है।
See full size image
जिस तरह से सोमवार, एकादशी व अन्य व्रत रखे जाते हैं, उसी तरह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नागव्रत रखने का भी शास्त्रों में उल्लेख है। इस दिन निराहार रहकर व्रत किया जाता है। अलग-अलग नागों का पूजन किया जाता है।
अनेक स्थानों पर नागमूर्तियों का भी पंचामृत से पूजन किया जाता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपूजा का अनुष्ठान होता है। पुराणों में जितने भी प्रकार के सर्पों का उल्लेख है, विशेष रूप से वासुकी, तक्षक, मणिभद्र, धृतराष्ट्र, कार्कोटक, धनंजय आदिसर्पों को दूध से स्नान कराया जाता है या इनकी प्रतिमा की पूजा की जाती है।
यदि वर्षभर पूजा न भी हो पाए तो नागपूजन की तिथि के दिन नागों की पूजा करने से सभी दिन पूजन के बराबर फल मिलता है।
इतने विशाल पैमाने पर विश्व में नागपूजा होने के बावजूद नागों की कई नस्लें विनाश की कगार पर हैं। नागरक्षा के बारे में पर्यावरणवादियों ने निश्चित ही जनजागरण किया है परंतु यदि हम एक दिन नाग की पूजा करें और बाकी तीन सौ चौंसठ दिन नाग को मारें तो हमारी पूजा भी व्यर्थ है।
कृषि पंडित नागों को खेती के लिए उपयोगी मानते हैं। धर्म सही मायने में तभी फलदायी होता है जबकि उसके प्रति वैज्ञानिक रवैया अपनाया जाए और नागपूजा के साथ नागरक्षा के प्रति भी हम वचनबद्ध रहें।

2 टिप्‍पणियां:

दिवस ने कहा…

बहुत सुन्दर post...नाग के विषय में अच्छी जानकारी...
सहमत हूँ आपसे, नाग देवता ही है...

Samanta ka Huk, Hamara Adhikar ने कहा…

achhi jankari hai sir ji.