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गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

वाट इज रॉन्ग इन सोशल नेटवर्किग, कुछ यूं रखी बात...


भोपाल. सरकार द्वारा सोशल नेटवर्किग साइट्स पर आपत्तिजनक और अपमानजनक सामग्री के नाम पर नियंत्रण की तैयारी पर सिटी ने कहा है कि यह गलत है। सिटी के लोगों का कहना है कि यह पॉलिटिकली मोटिवेटेड मुद्दा है।

सरकार को सोशल नेटवर्किग पर नियंत्रण की याद तब आ रही है, जब नेता निशाने पर आने लगे, उनको लेकर लोगों ने टिप्पणी करना शुरू कर दिया। तस्वीरों का गलत चित्रण, अश्लीलता और अभद्रता तो पहले से ही नेट पर चल रही थी। इस पर सिटी भास्कर ने सोशल नेटवर्किग पर एक्टिव लोगों से की बात।

कोई फर्क नहीं पड़ेगा

इशिता माथुर-स्टूडेंट और मॉडल

सोशल नेटवर्किग साइट्स को सेंसर करने से कुछ नहीं होगा। सोशल नेटवर्क साइट्स के अलावा बहुत से ऐसे माध्यम हैं जहां अश्लीलता की भरमार है। उस पर किसी का ध्यान नहीं है। सोशल नेटवर्किग साइट बहुत बड़ा पावर है, जिसने इजिप्ट में इतनी बड़ी क्रांति ला दी।

ठीक है सरकार का कदम

अनुभूति माथुर-मॉडल और स्टूडेंट

कपिल सिब्बल ने जो कहा वो काफी हद तक सही है। अति किसी भी चीज की नुकसानदायक होती है। मर्यादा में रहकर कोई काम किया जाए तो वो उचित होता है। मुझे लगता है कि यह ठीक कदम है।

बहुत देर बाद जागी सरकार

प्रो. सतीश मेहता - निदेशक, प्रयोग रंगसमूह

सरकार अब जाग रही है कि देवी-देवताओं के आपत्तिजनक चित्र और सामग्रियां सोशल नेटवर्किग साइट्स पर हैं। अपमानजनक टिप्पणी और अश्लीलता तो इन दिनों टेवी और फिल्मों में फैशन की तरह बढ़ रही है। सरकार मुद्दे को चुनाव में भुनाने के लिए हथकंडा अपना रही है।

एक सीमा तक हर चीज ठीक

सुखदेव पांसे-विधायक, कांग्रेस

एक सीमा तक हर चीज ठीक है। स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति अपनी जगह उचित है, लेकिन इसका भी एक दायरा हो, जिससे दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। इसके लिए नियम कायदे बनाना ही चाहिए। कपिल सिब्बल का यह कदम उचित है।

जरूरत जागरुकता की

ज्ञानेन्द्र गौतम-समाजशास्त्री

सेंसर होने से ज्यादा आवश्यकता लोगों में जागरूकता की है। देशवासियों के मर्यादा में रहने की है। लोगों को स्वयं समझना होगा कि कौन सी चीज आपत्तिजनक है। इसे सोशल नेटवर्किग साइट्स पर न डालें। कोई भी हो अश्लीलता या आपत्तिजनक टिप्पणी करना गलत है, लेकिन अश्लीलता
को तय कौन करेगा। राजनीति में बैठे चंद लोग या फिर समाज उसमें सहभागी होकर मूल्य निर्धारण करेगा।

कौन तय करेगा सही क्या

ऐश्वर्य शर्मा -स्टूडेंट, मैनिट

कौन तय करेगा कि क्या सही है क्या गलत? कुछ नेता कौन होते हैं। करोड़ों की संख्या में इसके यूजर्स हैं। सोशल नेटवर्किग साइट सिर्फ कम्युनिकेशन का जरिया ही नहीं। इसमें बनी कम्युनिटी से अपने फील्ड के बारें नई-नई जानकारियां भी मिलती हैं।

मर्यादा जरूरी है

ध्रुवनारायण सिंह -विधायक, भाजपा

आप सोशल नेटवर्किग साइट्स पर अपनी बात रख सकते हैं। किसी का विरोध भी प्रकट कर सकते हैं। लेकिन उसमें कुछ भी अपमानजनक और अश्लीलता न हो। उसकी एक सीमा और एक मर्यादा हो।

-- यदि सरकार द्वारा सोशल नेटवर्किग साइट को सेंसर करती है और किसी व्यक्ति या संस्था को लगता है कि इस तरह से उसकी स्वतंत्रता के अधिकार को छीना जा रहा है तो वह हाईकोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 226 व सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 का सहारा लेकर रिट दायर कर सकता है।

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शालीनता दोनों बनीं रहें .....

Unknown ने कहा…

सब कुछ लोगों की मानसिकता पर निर्भर करता है. आज जितनी उन्मुक्त अश्लीलता टीवी और फिल्मों में है, उतनी मुख्यधारा के इन्टरनेट पर बिल्कुल नहीं. हाँ, इन्टरनेट पर अश्लीलता की पराकाष्ठा भी है, परन्तु वह ढकी हुई है. वह ऐसी नहीं जैसे भक्ति चैनलों पर अचानक परफ्यूम के नंगे विज्ञापन का आना.
जो लोग सोशल नेटवर्किंग पर अश्लीलता का आरोप लगाकर इसकी आलोचना कर रहे है, वे मेरे फेसबुक पर आएँ. हजारों लोगों के मित्र समूह में आपको अभद्रता की झलक तक नहीं मिलेगी.
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