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शनिवार, 3 दिसंबर 2011

ईएमआरआई-108 : जिंदगी के लिए, जिंदगी के नाम

 EMRI-108 चिकित्सा वाहन सेवा
 
एक्सीडेंट या हादसे की कल्पना जितनी भयानक है उससे कहीं अधिक डरावनी और तकलीफदेह उसकी वास्तविकता होती है। त्रासदी की इंतेहा तब होती है जब आम जनता मूक दर्शक बनी रहती है। पुलिस का डर कहें या बदलते दौर की संवेदनहीनता, लोग इन मामलों से दूर ही रहना पसंद करते हैं। अमानवीयता का इससे अधिक क्रूर चेहरा क्या होगा कि कोई हमारी आंखों के सामने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दे पर हम उसके लिए कुछ करना ही नहीं चाहे जब तक कि वह हमारा अपना ना हो।

दया, इंसानियत, करूणा जैसे लफ्ज जबकि किताबों की शोभा बनते जा रहे हैं ऐसे में ईएमआरआई-108 सेवाएं मानवता की अनूठी मिसाल कायम करती दिखाई दे रही है।

विडंबना यह है कि इस सेवा को आम जनता का जो सहयोग मिल रहा है और जो मिलना चाहिए उसमें आज भी एक लंबा अंतराल है।

क्योंकि आज भी लोग नहीं जानते कि 108 क्यों और किसलिए उपलब्ध कराई गई है। आइए, आज एक समग्र दृष्टि डालते हैं GVK 108 सेवाओं पर। जानते हैं यह क्या है और किन परेशानियों और परिस्थितियों में लोगों की जिंदगी को समय की गति के साथ चलते हुए बचा रही है।



भारत में आपातकालीन परिस्थितियों में तत्काल स्तरीय चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने की उम्मीद रखना कल तक एक कल्पना ही था। मगर इस कल्पना को साकार किया है मात्र एक नंबर ने, जिसे 108 के नाम से जाना जाता है।

सड़क दुर्घटना, आगजनी, आत्महत्या, दिल का दौरा, ब्रेन हेमरेज, दंगा, बम ब्लास्ट जैसी आपात स्थितियों में लोगों को असामयिक मृत्यु से बचाने और प्रसवकालीन आकस्मिकताओं के दौरान तीव्र गति से पहुंच कर उचित चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में जीवीके- ईएमआरआई-108 सेवाएं वरदान साबित हुई हैं।

आप खुद ही सोचिए, अचानक घटी दुर्घटना, बस एक फोन 108, और मात्र कुछ ही मिनटों में एक एंबुलेंस हाजिर। सचमुच यह किसी चमत्कार से कम नहीं। ना सिर्फ घायल की मदद को तुरंत आगे बढ़े हाथ बल्कि प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ और तुरंत अनिवार्य बेहतर इलाज।
अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों और दवाईयों से सज्जित चिकित्सा वाहन और आवश्यकता पड़ने पर दूर बैठे विशेषज्ञों से टेली कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अनिवार्य परामर्श भी। यह सब नामुमकिन सा ही लगता है। लेकिन भारत के कई राज्यों में यह विचार न सिर्फ सोचा गया है बल्कि सुचारू रूप से क्रियान्वित भी हो रहा है। 
 

* कहां से आया विचार: यूं तो इतिहास बताता है कि 18वीं सदी में नेपोलियन के जमाने में भी इस तरह पूर्व-चिकित्सा व्यवस्था (प्री-हॉस्पीटल सिस्टम) हुआ करती थी। जो युद्ध में हुए घायलों को उठाकर तत्काल चिकित्सा शिविरों तक लेकर आती थी। आगे चलकर सबसे पहले इमरजेंसी कॉल के रूप में 1937 में ब्रिटेन में इमरजेंसी सर्विस आरंभ की गई जिसे 999 के नाम से जाना गया। इन दिनों ब्रिटेन में इसी तरह की 112 सर्विस भी संचालित है। 1968 में अमेरिका में इसी तर्ज पर 911 सेवा आरंभ की गई, जिसकी तत्परता ने देश-विदेश में खासी विश्वसनीयता और लोकप्रियता अर्जित की।

* भारत में कब और कहां से आरंभ हुई सेवा: भारत में यह सेवा 15 अगस्त 2005 में हैदराबाद में आरंभ की गई। पंजीकृत संस्था इमरजेंसी मैनेजमेंट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (EMRI) द्वारा इसे शुरू किया गया। मुख्य संस्थापक के रूप में श्री रामालिंगा राजू और उनके परिवार के 17 सदस्यों का नाम तथा सेवा उल्लेखनीय है। इस सेवा हेतु तकनीकी सहयोग सत्यम टेक्नोलॉजी से लिया गया। अब तक देश के 11 राज्यों आंध्रप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, गोवा, तमिलनाडू, कर्नाटक, असम, मेघालय, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ में सफलतापूर्वक संचालित है। उत्तरप्रदेश 12वां राज्य है जहां यह सेवा शीघ्र ही आरंभ होने जा रही है।

मप्र में 108



* मध्यप्रदेश में 108 : 16 जुलाई 2009 को मध्यप्रदेश में इस सेवा का मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुभारंभ किया। वर्तमान में प्रदेश के 9 जिलों में यह सुविधा उपलब्ध है। इनमें से भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, रीवा, सागर और जबलपुर में सफलतापूर्वक इन सेवाओं के संचालन के बाद दतिया, दमोह और सीहोर में यह सुविधा शुरु कर दी गई है। प्रदेश भर में इस समय 99 एंबुलेंस(108) चल रही है। अकेले इंदौर शहर में इस वक्त 15 एंबुलेंस है जो विभिन्न डेंजर जोन और पुलिस स्टेशनों पर तैनात है।

मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी/संयुक्त निदेशक डॉ. शरद पंडिके अनुसार, 108 सेवाएं जीवन बचाने में वरदान सिद्ध हुई हैं। एक्सीडेंट और कई बीमारियों में आरंभिक 7 से 10 मिनट ही महत्वपूर्ण होते हैं। अगर किसी घायल या मरीज को दुर्घटना स्थल पर ही तत्काल शुरुआती मेडिकल ट्रीटमेंट ‍मिल जाए तो उसके बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

दुर्घटना और प्रसव संबंधी मृत्युदर कम करने में 108 सेवाओं ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई है। इनके आने से मेडिकल परिदृश्य में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। फर्जी कॉलों में भी अब गिरावट आ रही है क्योंकि लोग समझने लगे हैं कि अच्छी सेवाओं का इस तरह से दुरुपयोग सही नहीं है।

आरंभ में कुछ लोगों ने 108 को आजमाने के लिए कॉल किए थे कि वाकई यह आती है या नहीं? पर अब जब से इन नंबरों ट्रेस किया जाने लगा है और जागरूकता बढ़ाई गई है इनमें कमी आई है। फिलहाल यह सेवा अत्याधुनिक उपकरणों और प्रशिक्षित स्टाफ से तैयार रहती है लेकिन मुझे लगता है नवजात शिशुओं की मृत्युदर कम करने के लिए कुछ और बेहतर उपकरण के साथ महिला स्टाफ की सख्त आवश्यकता है। उसी तरह बर्निंग केसेस से निपटने में भी कुछ और सुधार की गुंजाइश है। पुलिस, प्रशासन और मीडिया तीनों का उत्साहजनक सहयोग हमें इस सेवा में मिल रहा है।


प्रदीप साने
  इंदौर शहर के डिस्ट्रीक्ट कोओर्डिनेटर प्रदीप साने 108 की सफलता के कारण बताते हैं कि 108 की सेवा लेने के लिए पीडित को यह नहीं सोचना है कि उसके मोबाइल में बैलेंस है या नहीं। यह सेवा किसी तरह की जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेद नहीं करती। इसकी आरंभिक चिकित्सा सेवा पूर्णत: निशुल्क होती है। अचानक घटी दुर्घटना में लोगों को अक्सर यह समझ नहीं आता है कि तत्काल क्या और कैसा उपचार किया जाए या घायल को कहां ले जाया जाए। 108 सेवा न सिर्फ पीडित को घटना स्थल से उठाकर अस्पताल तक पहुंचाती है ‍बल्कि तत्काल जीवनरक्षक चिकित्सा सेवा भी देती है।

एक समस्या फर्जी फोन कॉल की है जिससे अब काफी हद तक निपट लिया गया है। पहले 108 तुंरत पहुंच जाती थी लेकिन इन्हीं फर्जी कालों की वजह से अब 5 से 7 मिनट फोन करने वाले की सचाई का पता लगाने के उद्देश्य से लिए जाते है। अब यह समय औसतन 18 मिनट का है। इंदौर शहर में एक 108 पर प्रतिदिन 4 से 6 केस आ रहे हैं इस लिहाज से प्रतिदिन के 60 से 65 मामले 108 के माध्यम से अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। इनमें से ज्यादातर की जान समय रहते बचा ली जाती है। इस मामले में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इन दिनों एक्सीडेंट से ज्यादा डिलेवरी केसेस आ रहे हैं।