देश की आशा हिंदी भाषा

फ़ॉलोअर

गुरुवार, 28 मार्च 2013

बच्चे की सीख


बचपन से ही मुझे अध्यापिका बनने तथा बच्चों को मारने का बड़ा शौक था. अभी मैं पाँच साल की ही थी कि छोटे-छोटे बच्चों का स्कूल लगा कर बैठ जाती. उन्हें लिखाती पढ़ाती और जब उन्हें कुछ न आता तो खूब मारती. मैं बड़ी हो कर अध्यापिका बन गई. स्कूल जाने लगी. मैं बहुत प्रसन्न थी कि अब मेरी पढ़ाने और बच्चों को मारने की इच्छा पूरी हो जाएगी. जल्दी ही स्कूल में मैं मारने वाली अध्यापिका के नाम से प्रसिद्ध हो गई. एक दिन श्रेणी में एक नया बच्चा आया. मैंने बच्चों को सुलेख लिखने के लिए दिया था. बच्चे लिख रहे थे.
 
 अचानक ही मेरा ध्यान एक बच्चे पर गया जो उल्टे हाथ से बड़ा ही गंदा हस्तलेख लिख रहा था. मैंने आव देखा न ताव, झट उसके एक चाँटा रसीद कर दिया. और कहा, "उल्टे हाथ से लिखना तुम्हें किसने सिखाया है और उस पर इतनी गंदी लिखाई!" इससे पहले कि बच्चा कुछ जवाब दे, मेरा ध्यान उसके सीधे हाथ की ओर गया, जिसे देख कर मैं वहीं खड़ी की खड़ी रह गयी क्यों कि उस बच्चे का दायाँ हाथ था ही नहीं.
 
 किसी दुर्घटना में कट गया था. यह देख कर मेरी आँखों में बरबस ही आँसू आ गए. मैं उस बच्चे के सामने अपना मुँह न उठा सकी. अपनी इस गलती पर मैंने सारी कक्षा के सामने उस बच्चे से माफ़ी माँगी और यह प्रतिज्ञा की कि कभी भी बच्चों को नहीं मारूँगी. इस घटना ने मुझे ऐसा सबक सिखाया कि मेरा सारा जीवन ही बदल गया.