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बुधवार, 30 नवंबर 2011

मानो या न मानो: गाय, कुत्ता, कौआ, कबूतर भी देते हैं आने वाले कल के इशारे


आपको यकीन नहीं होगा ये जानकर कि क्या जानवर भी आपका भविष्य बता सकते हैं। लेकिन ये सच है। ये बात तो रहस्य है कि ये जानवर कैसे बता देते हैं कि आने वाले कल में क्या होने वाला है लेकिन ज्योतिष का मानना है कि जानवरों को पूर्वाभास हो जाता है कि आने वाले कल में क्या घटना होने वाली है।


जनिए कैसे



गाय-
अगर आपका कोई काम होने वाला है या आप किसी काम के लिए जा रहे हैं तब गाय रम्भा दे तो समझ लेना चहिए आपका सोचा हुआ काम पूरा होगा।



कौआ-
अगर आपके साथ कुछ बुरा या अशुभ होने वाला है तो कौआ आपके सिर पर चौंच मार के आपको बाता देगा।



कुत्ता-
अगर आपके साथ कुछ बुरा या अशुभ होने वाला है तो कुत्ता आपके घर की तरफ मुंह कर के रोने लगेगा।



बिल्ली-
अगर आपके साथ कुछ बुरा होने वाला है तो बिल्ली रास्ता काट लेगी।



कबूतर-
अगर आपके घर पर कबूतरों का डेरा लगा है तो समझना चाहिए घर का कोई सदस्य कम होने वाला है या धीरे-धीरे वो घर सुनसान होने वाला है।

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

फेसबुक एक्टिविटी बनेगी मुसीबत की जड़!

बचकर रहे फेसबुक की दोस्ती से...
इन दिनों फेसबुक पर दोस्ती हर आयु वर्ग के यूजर की पहली पसंद बनती जा रही है। फ्रेंडलिस्ट में दोस्तों की संख्या बढ़ाने के चक्कर में लोग बिना सोचे-समझे फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट से लेकर हर लिंक को क्लिक कर देते हैं। कई बार बिना सोचे-समझे शुरू हुई ऑनलाइन दोस्ती ही लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है।

किसी भी वेबसाइट पर एक क्लिक करने से पहले थोड़ा संभलना अब बहुत जरूरी हो गया है। कुछ दिनों पहले बेंगलुरू के करीब 2 लाख फेसबुक यूजर्स को एक क्लिक का खामियाजा कुछ ज्यादा ही भुगतना पड़ा है। सोशल नेटवर्किंग साइट पर किसी संदिग्ध लिंक को कई यूजर ने ब्राउजर पर जाकर पेस्ट कर दिया। इसके बाद उनके परिवार के सदस्यों व दोस्तों को फेसबुक पर अश्लील लिंक व तस्वीरें भेजी गईं। फेसबुक पर करीब ऐसी 50 पोस्ट के जरिए यूजर को यह लिंक पहुंचाई गई थी। अपने दोस्तों की लिस्ट व हर पोस्ट पर क्लिक करने चाह यूजर को मुसीबतों की राह पर ले जाने का जरिया बन गई।


निजी जानकारी का गलत उपयोग : फेसबुक पर कई ऐसे ठग मौजूद हैं, जो यूजर की निजी जानकारी चुराकर उसका गलत उपयोग करना चाहते हैं। ये फर्जी प्रोफाइल बनाकर आप तक दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं। ऐसे लोगों से बचने के लिए चौकस रहने की जरूरत है। ऐसे ठग आपके दोस्तों के प्रोफाइल में जाकर उनकी फोटो चुराकर और बाकी डिटेल कॉपी कर उनके नाम से प्रोफाइल बनाकर इनवॉइट भेज सकते हैं। ऐसे में किसी दोस्त के प्रोफाइल पर थोड़ा भी शक है तो क्रॉस चेक कर लें। फेसबुक पर मौजूद हर प्रोफाइल का गूगल सर्च किया जा सकता है।

छोटे बच्चे भी पीछे नहीं : युवा के साथ बड़ी संख्या में छोटे बच्चे भी इन दिनों अनजान शख्स को अपना दोस्त बना रहे हैं। इस दौरान लोग अपनी तस्वीरों से लेकर कई निजी बातें तक शेयर करते हैं। किसी भी तरह के वायरस या हैकर्स के हमले के बाद यह निजी फोटो अपने आप ही किसी भी वेबसाइट पर पहुंच सकते हैं। बच्चों की फेसबुक एक्टिविटी पर माता-पिता को समय निकालकर नजर रखना बहुत जरूरी है। आप भी अपने बच्चे के फ्रेंडलिस्ट में जुड़ जाएं। वह ऑनलाइन है या नहीं, इस पर आप आसानी से नजर रख सकते हैं।

सुरक्षा का रखें ख्याल : आईटी एक्सपर्ट्‌स संजय वाधवानी कहते हैं कि फेसबुक पर अनजानी दोस्ती व पोस्ट पर क्लिक करने से पहले थोड़ा ध्यान रखें। फेसबुक एप्लिकेशन को भी इनस्टॉल करने से पहले बचना चाहिए। हर पोस्ट या लिंक को क्लिक करने से पहले ध्यान रखें।

वे कहते हैं कि कभी अपनी पूरी जन्म तारीख को प्रोफाइल में न डालें। बैंकिंग और क्रेडिट कार्ड से जु़ड़े हैकर्स के लिए यह काम की साबित हो सकती है। आप इससे बचने के लिए प्रोफाइल पेज पर जाकर इंफो टैब में क्लिक करें। यहां एडिट इंफर्मेशन टूल की मदद से आप यह तय कर सकते हैं कि लोगों को सिर्फ दिन और महीना दिखे, जन्म का वर्ष नहीं।

वे कहते हैं कि फेसबुक हर किसी को अपने दोस्त या प्लानिंग शेयर न करें। हर किसी से अपना फैमिली एलबम शेयर करने से भी बचें। कई सेलिब्रेटी की दोस्ती की इनवॉइट का जवाब देने से पहले भी सोचें। इन दिनों हर सेलिब्रेटी व नेताओं तक की दर्जनों फर्जी प्रोफाइल फेसबुक से लेकर टि्‍वटर तक पर बनी हैं।


कुछ टूल कर सकते हैं मदद : फेसबुक पर कई ऐसे टूल्स हैं, जिनकी मदद से आप अपनी प्राइवेसी बनाए रख सकते हैं। इससे अपनी पोस्ट, फोटो, कॉमेंट्स, स्टेटस, दूसरों के कॉमेंट्स तक फ्रेंड लिस्ट में मौजूद कुछ लोगों से छिपा सकते हैं, जिन्हें मजबूरी में आपने दोस्त तो बना लिया। इसके लिए प्राइवेसी सेटिंग का ऑप्शन चुन सकते हैं।

यहां ऐसा ऑप्शन भी दिया है, इससे गूगल सर्च को रोका जा सकता है। इसके लिए प्राइवेसी कंट्रोल में जाकर फेसबुक सर्च रिजल्ट में जाकर ऑनली फ्रेंड्स का ऑप्शन क्लिक कर दें। पब्लिक सर्च ऑप्शन को भी डी-सिलेक्ट करना न भूलें। इसकी मदद से आप बेसिक प्राइवेसी कंट्रोल कर सकते हैं। कस्टमाइज सेटिंग्स से सारी जानकारी को भी आप सेंसर कर सकते हैं।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

तंदुरुस्ती के लिए अच्छा है शुक्रिया कहना

अगर आप लोगों को शुक्रिया कहने, छोटों को आशीर्वाद देने में घबराते हैं तो तो अगले त्योहारों में इन्हें गिनना शुरू कर दीजिए। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि शुक्रिया कहना तंदरुस्ती के लिए अच्छा है।

कृतज्ञता को सकारात्मक जज्बा माना जाता रहा है, लेकिन दशकों से मनोवैज्ञानिकों ने शुक्रिया कहने के विज्ञान पर शायद ही कोई काम किया है। पिछले कई साल से हो रहे शोध में उन्हें पता चल रहा है कि शुक्रिया कहना मानवता की सबसे तगड़ी भावना है। यह आपको खुश करता है और भावनात्मक रिसेट बटन की तरह जीवन के प्रति आपका रवैया बदल सकता है। खासकर आजकल जैसे कठोर समय में।

इस बात का सबूत खोजने के अलावा कि कृतज्ञ होना लोगों की मदद करता है, मनोवैज्ञानिक कृतज्ञता और उसे दिखाने के सबसे बेहतर तरीके के बारे में और उसके पीछे दिमाग में होने वाले रासायनिक प्रक्रिया को समझने की भी कोशिश कर रहे हैं।

मायामी विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर माइकल मैककलफ ने उन लोगों का सर्वे किया है जिन्हें नियमित रूप से शुक्रिया अदा करने को कहा जाता है। वे कहते हैं, 'यदि आप ठहर कर अपने आशीर्वाद को गिनते हैं तो आप अपने भावनात्मक सिस्टम का अपहरण कर रहे होते हैं।' अपहरण से उनका मतलब भावनाओं को अच्छी जगह में ले जाने से है।

मैककलफ और दूसरों द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि शुक्रिया कहना ऐसा जज्बा है जो आत्मनिर्भर होता है, बहुत कुछ जीत की भावना जैसा। इसे दुष्चक्र कहा जा सकता है, लेकिन यह दुष्चक्र नहीं है। उनका कहना है कि मनोवैज्ञानिक कृतज्ञता की ताकत को नजरअंदाज करते रहे हैं। 'यह लोगों को और खुश करता है, यह एक असाधारण भावना होती है।'

मैककलफ के अनुसार कृतज्ञता के इतनी अच्छी तरह से काम करने की एक वजह यह है कि यह लोगों को दूसरों से जोड़ती है। इसीलिए यह जरूरी है कि यदि आप किसी का शुक्रिया अदा करें तो तहेदिल से करें, न कि तोहफे के लिए बस सामान्य सा शुक्रिया का नोट। शिकागो की मनोवैज्ञानिक और लेखिका मरियम त्रोइयानी कहती हैं कि उनके पास अब धीरे धीरे कृतज्ञता वाले ग्राहक आने लगे हैं। वे कहती हैं, 'कृतज्ञता आपका रवैया और जिंदगी के प्रति नजरिया बदल देता है।'

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान प्रोफेसर रोबर्ट एमन्स कहते हैं कि कृतज्ञ लोग 'अधिक चुस्त, जीवंत, दिलचस्पी लेने वाले और जोशीले होते हैं।' उन्होंने कृतज्ञता के विज्ञान पर दो किताबें लिखी हैं। उनका कहना है, 'कृतज्ञता तनाव को रोकने वाले बफर का काम भी करती है। कृतज्ञ लोगों को ईर्ष्या, क्रोध, आक्रोश, रोष और दूसरी तनाव पैदा करने वाली अप्रिय भावनाओं का कम अनुभव होता है।'

शनिवार, 26 नवंबर 2011

'सवाल' जो दर्द को तो हवा देते हैं लेकिन जवाब नहीं, आखिर क्यों...

 
आज से ठीक तीन साल पहले (26 /11 /2008) मुंबई में समुद्र के रास्ते दस आतंकी आए और पूरे शहर में आतंक का घिनौना खेल खेला। इस हमले ने अगले 60 घंटों तक पूरे देश को एक तरह से बंधक सा बना लिया। दिल्ली से लेकर देश के गांव-गांव तक लोग यही सोच रहे थी कि आखिर इस खूनी खेल का अंत क्या होगा?

29 नवम्बर की सुबह जब एन एस जी कमांडो ताज होटल से बाहर निकले तब जाकर पूरे देश को इस बात का यकीन हो सका कि 164 निर्दोष लोगों को मौत कि नींद सुला चुके दस में से नौ आतंकी मारे जा चुके हैं और एक को गिरफ्तार कर लिया गया है।

हमले के बाद सारे देश की निगाह दोषी या जिम्मेदारी तय करने के सरकारी खेल पर थी। लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर इतनी बड़ी मात्रा में गोले-बारूद के साथ ये आतंकी देश में घुसे कैसे? आखिर क्यूं सिर्फ दस आतंकियों पर काबू पाने में 60 घंटे का वक्त लग गया? सुरक्षा की इतनी बड़ी नाकामी के बाद इसे दूर करने के लिए सरकार क्या कदम उठाने वाली है?

 

सकते में आई सरकार ने माना कि इस हमले को पाकिस्तान में बैठे कुछ आतंकी संगठनों ने अंजाम दिया है। इसके बाद दिल्ली में यह घोषणा की गई कि जब तक पकिस्तान इन आरोपियों को देश को नहीं सौंपता दोनों देशों के बीच कोई वार्ता नहीं होगी। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक ने इस हमले की घोर आलोचना की और पाकिस्तान को इस मामले में भारत का सहयोग करने की हिदायत दी। हालांकि यह हिदायत सिर्फ मुंहजुबानी थी।

 
हमारी सरकार ने जिम्मेदार संगठनो से लेकर आतंकियों तक का नाम पाकिस्तान को सौंपा। इनमे से कुछ को पाकिस्तानी सरकार ने हाउस अरेस्ट तक किया जिनमें सबसे बड़ा नाम था जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज़ मुहम्मद सईद का। 

कुछ ही दिनों बाद यह साबित हुआ कि पाकिस्तानी सरकार कि यह कार्यवाही सिर्फ एक दिखावा मात्र है, क्योंकि लाहौर कोर्ट के आदेश पर सरकार ने सईद को आजाद कर दिया है और भारतीय सरकार पर आरोप मढ़ दिया कि हम उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाए हैं।
 

हमारी सरकार ने माना कि समुद्र की सीमा पर्याप्त सुरक्षित नहीं है लेकिन आज भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। न तो हमने मार्च 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों से कोई सीख ली थी और न ही 26 /11 की घटना से। तभी तो 1993 के बाद भी 26 /11 जैसी घटना हुई और इसके बाद 13 जुलाई 2011 को मुंबई के व्यस्ततम इलाकों (झवेरी बाजार, दादर और ओपेरा हाउस में 8 मिनट में तीन बम धमाके में 31 लगों की मौत) में फिर से वही हुआ जिसका डर था।
 

ज्यादा लाग-लपेट के बिना मूल बात अब भी वही है कि क्या आज भी हमारे समुद्र से लेकर हवाई रास्ते या सीमाएं इतनी सुरक्षित है कि हम बिना भय दिल्ली के चावड़ी बाजार से लेकर मुंबई की झवेरी बाजार या वाराणसी के घाटों पर निश्चिन्त होकर घूम सकते हैं? 

 
आपकी राय: आप बताइए कि ऐसा क्या है जो सरकार ने अब तक नहीं किया? आखिर क्यों इतनी दर्दनाक घटनाएं भी सरकारों की संवेदनाओं को जगाने में सफल नहीं हैं? अगर आपके हाथ में सत्ता की बागडोर होती तो सबसे पहले आप क्या कदम उठाते ?. (टिप्पणी करते हुए कृपया मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करें)